अथर्ववेद शतकम् | Atharvaveda Shatakam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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চপল পা [६७] परमात्मा की पूज[ प्रच॑त प्रार्थत प्रिममैपासों पर्चत \ प्रध॑स्तु पर॒श्रपा जहा पुरं ने धृष्णयर्घत ॥ २०७२५ ॥ * पदार्म -[प्रियगेधाग ) है प्यारी নিয়া, । शिः पदि यति पुरषो ! (पूर्ण) निर्भव (पुर्मू न) 1 दक गणान उस परगेदरर/ को [प्रसंत) पूजों & (স) সনদ प्ररार (সর্দন) দুনী, (সন) रगो, | (তা) मोर्‌ (नुत) गणौ मनाने वमक | | (দন) | 1 भावार्य --मतुष्यो फौ गारिप वि वे प्रधने पुत्र | | पुनियों सहित परेत सया मे, प्रेत पाप मे । ] प्रत्त गं में परगात्मा की शक्ति को निहार 4२४ ! प्रात्मा वी उन्नति करे । ५ + करे क कक পাপ ০, মি ~ न + कट




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