स्वामी रामतीर्थ भाग 6 | Swami Ramtirth Bhag 6

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Swami Ramtirth Bhag 6  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, प्रेर्णाकास्परूप ११ उस पदार्थ की लगन आप के चित्त में भवल।है; और समस्या दल करने की इच्छा भी आप के चित्त में मौजूद दे | गम्भीर समस्या ल्त नदीं दुर । जव झाप देखते दै कि कुछ प्रयत्नों से समस्या हल न्दी हु, तव श्राप कुद येयेन द्वो जाते हे और दूसरे पदार्थों के प्रति अपनी लगन को दूर कर देते दें । अब आप कुछ अधिक मुक्त द्वो गये, दूसरे शब्दों वद विशेप भावना आप के सामने अधिक भ्रमुख दो जाती ই) आप के चित में अधिकाघिक भर जाती दे और दूसरे विचार्यो को निकाल मगाती दे! समस्या यय भी नई दल हुई। अधिकांश भ्रन्य विकारों और अर रागों से भी छुट्टी लेली जासी दै,फिर भी आप के चिच मे, संस्कृत की शब्दावली में, अर कार का भाव बना रदता दें, मैं यद् करता हूं” और “सुक इस अय मिलता दै/”'। तब क्‍या होता दै? समस्या नदीं दत हुए | कुछ देर याद, जब आप उसे दस्त करने की তুল লি लगे दी रहते हैं घोर उस पर सोचते द्वी जाते हैं, मे और तुम का ध्यान बिलकुल दूर ছী জালা ই) আত আহ मावना आपके पित्त में सर्वे प्रधान द्वो जाती दे।जथ यद्द गति ভ্রী আবী, तय में और तुम, मेरा और तेरा अथवा काल और दिक का ध्यान बिलकुल जाता रद्दता दैे।आप के चित्त में समझ स्थान एकददी मावना घेर लेती दै, बद झाप के दिल में काई झुन्य स्थान नहीं छोड़ती, आपके हृदय में कोई स्वाली जगद नहीं रखती और यहू फट खकते दं कि आत्मा उस भावना से अति पूर्ण दो ज्ञाती दे तथा भावना से आप को आमभिन्‍नता द्वो जाती द्वे । अब पतंगा दुग्ध होने रूगा, मधुमफण्ली ने अपना जीवन देदिया,चुद्ध अद कार पर स्वामित्व जाता रड५, मोग फा पिचार चला गया । अब इस भचस्था में पहुँच होगा तब बलिदान ध्ोगया, सद्दसा झाप प्रेरणा मे आ गये, और




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