हिंदी शब्दार्थ - पारिजात | Hindi Shabdarth Parijat
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
757
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)বন্য, লৌ০) সরা, ই জিত ভী বান, মক্ষহন্ড |
अशडस (खी) श्रषुपिधा, किना, संकट 1
द्री वत्० ( सी* ) यासाम षा यना दुधा रेणमी
वस्र विशेष, ज्यादेतर यद ओढ़ने के काम में थ्राता
है । आसान की अददी यहुत अच्छी ऐपी है ।
झगइच्मा तदू० (३०) विगा बधिया किया हुआ जान
चर -यैत (व°) सद. धरसी मयेष्य 1
घग्डैल तदू० (वि०) भणडावाली ।
ध्यतः तत्० (श्र०) इससे, इस कारण, इस हेतु, इसलिये 1
श्मतपघ तत्० (०) सी कारण, हसी देतु, दसीलिये ।
श्रतथ्य (घि°) तरय, श्ड्ठ 1
अतदुगुण (०) अलंकार विशेष ।
आतमु तव्० (पु०) या ध्यतन तर० (३०) देह रहित,
विना शरीर দ্যা कामदेव । [कामदेव का शरीर महादेव
के क्रोध से भस्म हो गया था, एन्द्र ने इसे मद्रादेव
पर विजय पाने की आशा से सेशा था, परन्तु भभा-
स्यवश बह महादेव के क्रोधाधि से दग्ध द्वो गया।
पुनः पार्यती की प्रार्थना से मद्दादेव ने हसके उच्जी-
वित्र किया । ऋतएव फ़ामदेव का नाम चतनु है 1]
पतन्द्रित तव्० ( गु० ) भालस्य रहित, कर्मठ, घपल,
चात्नाफ, झाग्रत 1
अंतर दे० (६०) पुष्पसार, दृ॒ध +-दान (४० ) अतर
रखने छा ঘাল।
ध्तरंग (धु० ) बह क्रिया मिससे संगर जमीन से उखाड़
कर रखा जाता है ।
ध्तरसों ( घु० ) चीते और शाने ভা परसों का पूर्व
भगल्ला दिन, वर्तमान दिन से बीता हुआ या थाने
वाला तीसरा दिन ।
अत्तकित तद्० (वि०) पिना विचारा, आकस्मिक ।
ध्त्तक्य तद्० (वि०) अचिस्त्प | अनिर्वंचनीय ।
গন तव्» (गु०) बिना तल का, बिना पेंदे का, चत्तुल्न
गोल, सात पाताल मं पदिला पाता ।-स्परणं
चत्° ( यु° ) थगाध, थतिगमीर, जिसके तल कां
रपर्श न हो सके ।
प्रतघार दे° (तच्०) रमिवार 1
प्रतसी तव्० (खौ०) सीसो, थलसी, पट, सन ॥
श्रता तंव्० (९०) गवैया, অন্লী वाने याचा, वजवैपा ।
प्रति सच्° (खन) नन ग्ज्य के पहले धचिश्ब्द याग
१३
चिक्र
है थे शब्द अपने से अधिक सर्य ই वाचक ष्टो घाते
हैं। भदिक, बहुत, दिस्तार, अत्यन्त, यदा, चीता
दुआ, दो छुफा, उर्लाँचना, पार |--उक्ति तदू७
(प्री०) धत्युक्ति, असम्भय प्रशंसा ।--छाय तत्०
( छु० ) बढा इस्सर, भयानक शपीर यासा \ रार्
ण एर घुग, इसने तपस्या के दास वदा फो सन्तुष्ट
करके एक झम्रेय कवच पाया था, मिससे यह अजेय
हो उठा था । सष्छण के साथ युद्ध में यह मारा
गया ।--काल (घर) शतरेरधरिवम्य, देरी [-- कम
(धु%) यौधना, पार হীনা, परा, धषपमान करना,
इन्यथाचरण, कमभक्ग करना ।- ऋान्त ( घु० )
पार गया हुआ 1--छ ঘন তত) चत विष,
पाप दूर फरनेके सिये यद मत क्या जाता है,यह
वत प्राजापत्य यत का भेद् है, उससे हसमें विशे-
पता ददी है कि जितने दिन भोजन সুনে দলা নিন
है उतने दिन अतिरूच्छ में दाहिने द्वाथ में जितना
अस्न आवे उठता ही धादार करना चाहिये ।
प्तिथि तत्» (३०) साधु, मात्र, पाहुन, जिनके थाने
की तिथि नियत न हो । भीरामचन्द्र जी के पौत्र
एवं छश ढे घुग का नाम ।- भक्त ( ° ) অনি-
विर्यो की सेवा करत षाठ, অনিঘিঘ্ত্রক |
श्रतिपन्था तद्० ( पु ) यडा मार्ग, राजपथ, त्तद 1
श्रतिपर तव् (घु° ) धरति श्रु, मदाैरी; उदासीन,
असम्बन्ध
घझतिपयाक्रम तव्० (पघु०) बडा प्रताप, बहा तेज ।
आतिपात तद» (पु०) झन्पाय, उत्पात, उपद्य ।. *
अतिपातक तव» (ए०५) भारी पाप, भव प्रझार के पाएं
म खव से वदे तीन पाप। माचा, कन्या भौर पुत्र
की स्रो का संसर्म करना, घुरपों के दिये अतिपातक
है। ऐसे दी पुत्र, पिता तथा रबसुर का ससर्ग
करनः, कियो ४ तिये सतिपानक दै \
श्रतिपःन तव् ( पु ) बहुत पीना, सचता, पीसे फा
स्यसन । [ बहुत ष्टी पाष, दूर नी |
অনিঘাহের चद् ( घु° ) सभिष्ट, समीप, चति निकट,
झतिप्रसंग तव्० ( पु० ) भद्यन्द मेल, पुमरुक्ति, সরি
विस्ठार, व्यभिचार, ऋम का नात करना !
पतियरवे ( पु० ) एक অক্চায ছা ভর জট पथम
हतीय चरणों में $२ भौर दूसरे तथा चौथे चर्यो
=
৭০
ই উল
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