हिंदी शब्दार्थ - पारिजात | Hindi Shabdarth Parijat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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বন্য, লৌ০) সরা, ই জিত ভী বান, মক্ষহন্ড | अशडस (खी) श्रषुपिधा, किना, संकट 1 द्री वत्‌० ( सी* ) यासाम षा यना दुधा रेणमी वस्र विशेष, ज्यादेतर यद ओढ़ने के काम में थ्राता है । आसान की अददी यहुत अच्छी ऐपी है । झगइच्मा तदू० (३०) विगा बधिया किया हुआ जान चर -यैत (व°) सद. धरसी मयेष्य 1 घग्डैल तदू० (वि०) भणडावाली । ध्यतः तत्‌० (श्र०) इससे, इस कारण, इस हेतु, इसलिये 1 श्मतपघ तत्‌० (०) सी कारण, हसी देतु, दसीलिये । श्रतथ्य (घि°) तरय, श्ड्ठ 1 अतदुगुण (०) अलंकार विशेष । आतमु तव्‌० (पु०) या ध्यतन तर० (३०) देह रहित, विना शरीर দ্যা कामदेव । [कामदेव का शरीर महादेव के क्रोध से भस्म हो गया था, एन्द्र ने इसे मद्रादेव पर विजय पाने की आशा से सेशा था, परन्तु भभा- स्यवश बह महादेव के क्रोधाधि से दग्ध द्वो गया। पुनः पार्यती की प्रार्थना से मद्दादेव ने हसके उच्जी- वित्र किया । ऋतएव फ़ामदेव का नाम चतनु है 1] पतन्द्रित तव्‌० ( गु० ) भालस्य रहित, कर्मठ, घपल, चात्नाफ, झाग्रत 1 अंतर दे० (६०) पुष्पसार, दृ॒ध +-दान (४० ) अतर रखने छा ঘাল। ध्तरंग (धु० ) बह क्रिया मिससे संगर जमीन से उखाड़ कर रखा जाता है । ध्तरसों ( घु० ) चीते और शाने ভা परसों का पूर्व भगल्ला दिन, वर्तमान दिन से बीता हुआ या थाने वाला तीसरा दिन । अत्तकित तद्‌० (वि०) पिना विचारा, आकस्मिक । ध्त्तक्य तद्‌० (वि०) अचिस्त्प | अनिर्वंचनीय । গন तव्‌» (गु०) बिना तल का, बिना पेंदे का, चत्तुल्न गोल, सात पाताल मं पदिला पाता ।-स्परणं चत्‌° ( यु° ) थगाध, थतिगमीर, जिसके तल कां रपर्श न हो सके । प्रतघार दे° (तच्‌०) रमिवार 1 प्रतसी तव्‌० (खौ०) सीसो, थलसी, पट, सन ॥ श्रता तंव्‌० (९०) गवैया, অন্লী वाने याचा, वजवैपा । प्रति सच्‌° (खन) नन ग्ज्य के पहले धचिश्ब्द याग १३ चिक्र है थे शब्द अपने से अधिक सर्य ই वाचक ष्टो घाते हैं। भदिक, बहुत, दिस्तार, अत्यन्त, यदा, चीता दुआ, दो छुफा, उर्लाँचना, पार |--उक्ति तदू७ (प्री०) धत्युक्ति, असम्भय प्रशंसा ।--छाय तत्‌० ( छु० ) बढा इस्सर, भयानक शपीर यासा \ रार्‌ ण एर घुग, इसने तपस्या के दास वदा फो सन्तुष्ट करके एक झम्रेय कवच पाया था, मिससे यह अजेय हो उठा था । सष्छण के साथ युद्ध में यह मारा गया ।--काल (घर) शतरेरधरिवम्य, देरी [-- कम (धु%) यौधना, पार হীনা, परा, धषपमान करना, इन्यथाचरण, कमभक्ग करना ।- ऋान्त ( घु० ) पार गया हुआ 1--छ ঘন তত) चत विष, पाप दूर फरनेके सिये यद मत क्या जाता है,यह वत प्राजापत्य यत का भेद्‌ है, उससे हसमें विशे- पता ददी है कि जितने दिन भोजन সুনে দলা নিন है उतने दिन अतिरूच्छ में दाहिने द्वाथ में जितना अस्न आवे उठता ही धादार करना चाहिये । प्तिथि तत्‌» (३०) साधु, मात्र, पाहुन, जिनके थाने की तिथि नियत न हो । भीरामचन्द्र जी के पौत्र एवं छश ढे घुग का नाम ।- भक्त ( ° ) অনি- विर्यो की सेवा करत षाठ, অনিঘিঘ্ত্রক | श्रतिपन्था तद्‌० ( पु ) यडा मार्ग, राजपथ, त्तद 1 श्रतिपर तव्‌ (घु° ) धरति श्रु, मदाैरी; उदासीन, असम्बन्ध घझतिपयाक्रम तव्‌० (पघु०) बडा प्रताप, बहा तेज । आतिपात तद» (पु०) झन्पाय, उत्पात, उपद्य ।. * अतिपातक तव» (ए०५) भारी पाप, भव प्रझार के पाएं म खव से वदे तीन पाप। माचा, कन्या भौर पुत्र की स्रो का संसर्म करना, घुरपों के दिये अतिपातक है। ऐसे दी पुत्र, पिता तथा रबसुर का ससर्ग करनः, कियो ४ तिये सतिपानक दै \ श्रतिपःन तव्‌ ( पु ) बहुत पीना, सचता, पीसे फा स्यसन । [ बहुत ष्टी पाष, दूर नी | অনিঘাহের चद्‌ ( घु° ) सभिष्ट, समीप, चति निकट, झतिप्रसंग तव्‌० ( पु० ) भद्यन्द मेल, पुमरुक्ति, সরি विस्ठार, व्यभिचार, ऋम का नात करना ! पतियरवे ( पु० ) एक অক্চায ছা ভর জট पथम हतीय चरणों में $२ भौर दूसरे तथा चौथे चर्यो = ৭০ ই উল




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