पत्थर - अलपत्थर | Patthar Pralpatthar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26.28 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भेरवम्रसाद गुप्त
सुषमा और स्वास्थ्यकर जल-वायु का आकर्षक वर्णन रह और पहाड़ों
लड़कियों और बजरों के चित्र होते ह और लिखा रहता है-- कश्मीर
देखिए । मैदानों की गर्मी और घूल-गर्द से बचना चाहते हो तो कश्मीर
आइए. . . .और मुझे हमेशा लगा है कि कोई भिखारिनि लड़की सोने
का कटोरा हाथ में लिये भीख माँग रही है ।
मैंने कइ्मीर पर कितनी ही रूमानी कहानियां पढ़ी हूं
जिनमें मिहमानों' को लड़कियाँ भेंट की जाती हैं और बाप या भाई बखशीश
माँगते हैं। उन कहानियों में सुन्दर दृद्यों के वर्णन मिलते हैं, भोली-भाली
लड़कियाँ मिलती हैं, बेश्म माँ-बाप मिलते हैं। लेखकों का कहना है कि वहाँ
इतनी ग़रीबी है कि लोग इज्जत बेचते हैं। इस्ज़तफ़रोशी के चित्रण
माध्यम से वे लेखक यह दिखाना चाहते हैं कि कइमसीर बहुत रारीब है ।
.और सम्त्राट जहाँगीर की वह अमर पंक्ति--अगर फ़िरदौस
बर रूए जमीं अस्त, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त ! --याने अगर
घरती पर स्वर्ग कहीं है, तो यहीं है, यहीं 2 , यहीं है ।
.और फिर जैसे सब कुछ गडमड हो जाता है और उसमें
कश्मीर डूब जाता है ।
आखिर कश्मीर है कया ? वह भू-खण्ड जो स्वर्ग-सा सुन्दर .! और जहां
के लोग चन्द सिक्कों के एवज़ अपनी इज्जत बेचते हैं ?
कहानियां
श्र
कि जाइए, हमारे गाँवों में जाकर देखिए कि क्या आपको ऐसे ही लड़कियाँ
मिल जाती हैं ? ककमीर के छोगों का कहना है कि उन कहानियों में कश्मीर
नहीं है। उन कहानियों में लेखकों की अपनी ही विकृतियां हैं। ऐसे लेखकों
को मालूम ही नहीं कि कइमीर क्या है ? वहाँ के छोग और उनकी ज़िन्दगी
८
चल वकसडसासाउथड-दार न.
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