भौमर्षि | Bhoumarshi

Bhoumarshi by शुभांगी भड़भड़े - Shubhangi Bhadbhade

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वे विनोबाजी की प्रत्येक रुचि को जान गये थे। खेत में गीली मिट्टी का स्पर्श पैरों को होते ही वे आनन्दित हो उठते थे। यह आनन्द ज्ञानेश्वरी के इच्छित सन्दर्भ का आनन्द है या अगम्य ईश्वर के साक्षात्‌ हरित रूप का वह आनन्द है या अनुपम सृष्टि सौन्दर्य के साक्षात्कार का वह आनन्द है- यह पता नहीं चलता था। प्रत्येक पेड के पास बैठकर वे प्रेम से पत्ते ओर फूलों को हाथ लगाने लगे। पुन:-पुन: उन्हीं पंक्तियों को वे दुहराने लगे उनको तन्मयता देखकर मोघे के मन में आया कि कैवल्य की चाँदनी का प्राशन करनेवाला चकोर और अगम्य कौ सुगन्ध फैलीनेवाला समीर- निराकार से ही विनोबा के आगे साकार हुए होगे। उनको सन्देश देना था, ' बाबा, बापू का पत्र लेकर कोई देसाई आये है । '' विनोबा कां ध्यान नहीं था । खेत मे अनेक स्त्रीपुरुष काम कर रहे थे । विनोबा के मधुर स्वर से प्रसनन सुबह ओर अधिक प्रसन हो गयी थी। सहसा उनका ध्यान गया ओर वे बोले, ““ बापू ने किसी को भेजा है न!*' वे जल्दी-जल्दी अपने कक्ष तक आये । मेज पर ताजे अखबार रखे थे। विनोबा ने एक अखबार उठा लिया । सभी अखबार्यो मे एक ही समाचार था- द्वितीय महायुद्ध का। सारा संसार ही भयग्रस्त तथा आतंकित हो गया था। महात्माजी का अहिंसा ओर मत्य का मार्ग মালা से निस्तेज हो गया था। सत्य थी सत्ता! सत्य धी धनलिप्सा ओर उसके लिए सस्ता होता जा रहा धा मृत्युमार्ग ! निष्ठा ओर परस्पर स्नेहभावना समाप्त हो गयी थी । नैतिकता का भय लुप्त हो गया था। प्रतिदिन के समाचारपत्र पढ़कर विनोबा शान्त थे। आश्रम से सैकर्डो मील दूर महायुद्ध चल रहा था परन्तु उसकी प्रतिध्वनि भारत के कोने-कोने में पहुँच गयी थी। उसकी तपन साधारण लोगों के परिवारों को झुलसा रही थी। कल-परसों ही कुछ लोग विनोबा से मिलने आये थे। उनमें किसी ने पूछा था, ''संसार में हिंसाचार प्रबल हो रहा है इसलिए... '' विनोबा ने तत्क्षण कहा था, '“विनाशकाले विपरीतबुद्धि: ।'' “परन्तु आप कुछ नहीं कर सकते ? '' *' क्‍यों नहीं कर सकते ? परन्तु जब तक कोई पवन आकर मुझसे यह नहीं कहता कि विन्या उठ, कुछ कार्य कर, तब तक आज्ञा के बिना मैं कैसे कार्य करूँ ?”! '* परन्तु आप जैसे व्यक्ति को आज्ञा कौन देगा ?'! '* जनता जनार्दनं ओर सेवाप्राम के पहात्मन्‌।'' ^“ परन्तु तब तक आप क्या सन्देश देगे ?' | '* आप पत्रकार हैँ तो बताता हूं। बढते हुए हिसाचार के सत्य चित्र प्रकाशित करो। सोये हुओं को जगाओ। यदि आप मुझ जैसे साधारण व्यक्ति हैं तो कुछ नहीं कर सकते, इसलिए विवश समझ लीजिए।'' हाथ में जब समाचारपत्र लिया तब सारे संवाद कुन्दर दीवान को याद आ गये। 16 :: भौमर्षि




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