वैदिक धर्म | Vaidik Dharm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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অন্ধ + ] ' इुकता का पाठ । ८ १३) रव पांडव एक मतसे राज्य करते,सो | तेज में संपूर्ण देशोने अपने अपने तेभो ब्रिलोकॉकों जीत छेते; परतु आकसकी | का अंश मिला दिया। देखिये «इसका फुटके कारेण आगेजताकाही केसा ना ` वर्णन हुआ, यह बात यहां विशेष विचाससे अतुलं तत्न तत्तेजः सर्वेदेव- पाठक देख सकते हैं । इीविषयर्म एक हासिरजम। एकस्थ लदभृष्मरी उत्त उदाहरण मार्कण्डेय पुराणम आगया हैं वह भी साराशसे यहां देखना उचित है महिषासुर । देवासुरम मूथद्ध॑ पूर्णमच्द- च्राल परा । महिषेऽसुराणाम- धिपे देवाना च पुरंदरे १॥ सथासुरेमहावीये्देवेसेन्यं पराजितम्‌ । जित्व! च सक छान्देवानिन्द्रोऽभून्माहिषा- खुर)॥र॥ - मार्केण्डेयपुगगअ,८२ ५ पूैकालमे देवो ओर असुरका युद्ध पृणे सो = हुआ उसमें दंबों- का सेनापति इन्द्र थ ओर राक्षसोका महिषासुर था युद्ध कै अतमे देवोका पूण पराभव हो गया अर महिषासुर दबोके राष्ट्रका सम्राट्‌ बनगंया । ” अपना पराजय होनेके पश्मात्‌ देव भाग गये और श्रीशेकर ओर श्रीविष्णु के पास गये | देवोंने अपने पूणे पराजय का वृत्तांत- भगवान विष्णुस कहा और अपनी शोचनीय अवस्था का वणेन उन के सन्मुख किया उस समय मयबान कंकर ओर विष्णु के अन्दरसे एक विल- क्षण तेज बाहर निकृठ आया । उस दिव्य उ्याप्तलोकन्नरय :ल्क्यि ॥ माकंण्डेय पुशम अ. ८२।१२ “सब देदोंके श्गीरोसे निकले हुए तेजों का मिल कर एक स््रीरूपी अत्यंत तेजस्वी शरीर हुआ। जिसके तेज: से ब्रैलोक्य व्याप्त हुआ । ” इस तेजोमय श्वी द्वेत्रीने 'असुरोंका पराभव करके फ़िर देवोंका «साम्राज्य शुरू. किया | अथोत्‌ आपसकी फूट के कारण देवोंका पराभव हुआ और जब देखींने अपने तेज:ओर वीये का एक संघ बना दिया, तब उनके सामने राक्षस 'पराभूत होगये । पूर्वीक्त वणेन में हरएक -देवने अपना तेजस्वी अंझ भेजा, संपूर्ण <देवोंके तेजोंका एक महान ' संघ ” बना और তন্ন ঘন शाक्षसोंका पुणे पराभव ककिया। इस वर्णन का अलंकार हटाया जाय,तो कथाका मूल स्वरुप स्पष्ट विदित हाता है। जिस समय देवोंके अंदर आपमर्म एकता नहीं थी,हरणक देव अथवा हर एक देवोंका गण .किंवा देवोंकी जाति, . अपनी अपनी घरमंडम ,रहकर .. अठभही रहती थी, उस ঘমষ হানার 'জামন




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