श्रीकांत वर्मा | Shrikant Varma

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Shrikant Varma by अरविन्द त्रिपाठी - Arvind Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जो मुझसे नहीं हुआ / 15 हुए। जिरह के अधिकांश वैचारिक और आलोचनात्मक निबन्ध यहीं लिखे गये। श्रीकांत की अधिकांश प्रेम कहानियाँ यहीं बुनी गयीं। कहना न होगा, श्रीकांत के संघर्ष काल ही उनके साहित्यिक जीवन के सबसे उत्तेजक ओर उर्व काल हैं। इस उर्वर और संघर्ष काल के पार्श्व में खड़ी हैं-मिनी माता, जिन्हें मुक्तिबोध की तरह श्रीकांत के लिए भूलना हमेशा असम्भव रहा। श्रीकांत जब सन्‌ 56 में आये थे तो उनकी उम्र 24-25 के आस-पास थी। सन्‌ 1967 में मिनी माता की अगुआई में श्रीकांत ने बहुत पकी उम्र में वीणा (जयपुर) से विवाह किया। श्रीकांत छत्तीस की उम्र में पहुँचने के बावजूद विवाह से कतराते थे। इसके पीछे कारण उनके प्रेम की विफलता भी हो सकती है-इसका थोडा-सा जायका हम हश्चमतत (कृष्णा सोबती) ने लिया है । श्रीकांत के वे दिनि की याद को ताज़ा करते हुए हशमत लिखती हैं “श्रीकांत पर उन दिनों अन्दर के शोर का-सा सन्नाटा छाया रहता। चेहरा कभी खुश, कभी अवाक्‌ लगता, जैसे कोई बाहर की दुनिया से बेख़बर किसी टीले पर चढ़ने की जल्दी में है। अंतरंगता का झिलमिलाता एक अपना ही ग्राफ़। ऊपर नीचे सिमटता। फैलता। वह अक्सर सफ़ेद में दिखती। बाल ठीले। कुछ चिकने। चेहरे पर कसाव। मुस्कान अनोखी। श्रीकांत अपने कपड़ों के ढंग-बर्ताव में ताज़े-ताज़े देहतवीपने की झलक देते।” इस पैरे में आगे, उन दिनों श्रीकांत के साथ कृति में बतौर सहायक सम्पादक के रूप में कार्य कर चुकी कांता पित्ती की एक विफल प्रेम कविता का हवाला दर्ज किया है- पय होने के बाद अधर ओर बटर ग्या आ ; यह समय को थाम आज सचमुच सूना है आकाश सहेज सकी नहीं सुख, सुख गन्ध और माँयती रही अक दे गया है दर्द मेरा वही अतिरेक हंत सकने की सीमा तक। -कांता हशमत की आगे की टिप्पणी में श्रीकांत के टूटे दिल की मनोदशा देखिए : “कहाँ गया वह वक़्त! क्‍यों छिटका, क्‍यों उजड़ा-क्यों पीठ दी-हमें कुछ मालूम नहीं। एक शाम निरुला के सामने वाले कार्नर पर सफ़ेद लिबास में वह ऐसे मुड़ी जैसे नियति का फ़ैसला हो। क़दमों पर दबाव दे सड़क पार की और श्रीकांत सिर्फ़




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