क्रान्ति का मूल स्त्रोत बालक | Kraanti Kaa Muul Shrot Baalak

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Kraanti Kaa Muul Shrot Baalak by बंसीधर -Bansiidhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४] में पड़े हुये मानव-समाज को अनुप्राणित करने का केवल एक ही उपाय है ओर वह है बालक | यदि मानव समाज को उन्नति के शिखर पर आरूद करना है, दुनियां में शान्ति स्थापित करना ६, तो हमें बालक को समभना होगा, उसका सम्मान करना होगा । जालक विपथगामी, नासममः और निबुद्धि नहीं हैं। बालक कोर कागज, खाली बतन या मिट टी का ढेला भी नहीं हे जिसे हम असां चाहें बना सकें। बालक अदभुत शक्तियों का भण्डार है; सदगु्णों की खान है| उसकी शक्तियों और गुणों की कोई मयांदा या सीमा नहीं है। मिस्टर होग्स ने बिलकुल ठीक लिखा हे कि “प्रत्येक नव-जात शिशु में ईंसामसीह छिपा हुंआ है । मनुष्य जन्म से ही खराब होने बदले जन्म से ही ईश्वर बनने की शक्ति लेकर पेंदा हुआ है ।” विद्वानों, विचारकों, तत्ववेताओं, शिक्षा-शास्त्रियों ओर मानस-शास्त्रियों ने मुक्त कशंठ से बालक की प्रशंसा की है ओर उसकी महिमा का बखान किया है। प्राचीन काल के एक महान आचार्य ने तो यहां तक लिख दिया है कि “जो कोई भी इन नन्‍्हें। पर अत्याचार करता हैं, उचित हो चकक्‍की का पा< गले में डाल कर उसे समुद्र में डबो दिया जाय ।” 'बालक एक स्व॒तन्त्र व्यक्ति हैं। अपना विकास आप करने को उसमें शक्ति हैं। जान लॉक लिखता है--“बालक भी हमारी तरह स्वतन्त्र है। जिस तरह बड़े बूढ़े स्वतन्त्र हैं, उसी तरह बालक भी स्वतन्त्र है। वे जो कुछ अच्छा करते हैँ सो सब अन्तः स्फूर्ति से ही करते हैं। वे स्वाधीन और सम्पूर्ण हैं। आपको जो पसन्द हो, वह अगर बालक को पसन्द न हो, उसमें उसकी रुचि न हो, तो वह काम उससे कभी-न करवाइये | सिंखाने के विष्रयों की अपेक्षा सीखने वाले का महत्व अधिक है। कया सीखना और क्यान सीखना, इसका निर्णय सीखने वाले को ही करना चाहिये सिखाने वाले को नहीं । बच्चों




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