शुम्भवध - महाकाव्य | Shumbhvadh Mahakavayam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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12 - - - - - | ये व्यक्तित्व के धनी थे । लम्बे कद वाले, गेहुए रग के थे। ये किसी भी बात का बेबाक जवाब देते थे, हँसमुखः स्वभाव वाले, विनोद प्रिय मनोरञ्जन रिप प्रसन्नचित्त रहने वक्ते थे । विरोधियो के सामने झुकना इन्हे स्वीकार्य नहीं था 1 हमेशा विरोधियो से सतर्क रहने वाले थे 1 साहसी ---- ये बड़े ही साहसी थे | ये कभी भी डर का अनुभव नहीं करते थे । « जब कहीं कोई शका होती तोभेअकेले ही चल पडते थे । इसी पर एक उदाहरण प्रस्तुत हैं - शोवड़े जी की बातों पर डा0 जय कृष्ण जी ने बताया कि एक बार जब 06 दिसम्बर, 1992 को राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद का (कल्याण सिंह की सरकार मे) कार सेवको ने विध्वत कर के मन्दिर का झण्डा फहराया था, उत्त समय बतारस मे विश्वनाथ मन्दिर पर पीएसी का पहरा धा । यह रत्रिमे 2 या 2.30 बजे बिना किसी से बताये लाठी ले कर बाहर हल रहे थे | जब शेवड जी से पूछा गया कि बाहर आप अकेले लाठी ले कर वर्यो टहल रहे है, तो उनका उत्तर था कि- 'भैने सोचा कि शोरगुल हो रहा है, ऐसा लगा कि कुछ मुसलमान विश्वनाथ मन्दिर पर घावा बोल रहे हैं । इसलिए भे लाठी ले कर बाहर टहल रहा हू । जब फिर पूछा गया कि आप अकेले वृद्धावस्था में क्या कर पायेगे ? तो फिर उनका उत्तर था कि जो साहसी होता है वह अकेले ही शत्रुओं को परास्त कर देता है, जब मुझख्लें साहस हैं तो दूसरे को बुलाने कहाँ जाऊ ? क्यो दुसरे को दढता फिर ? भ चालीस साल तक पहलवानी किया हूँ । ------------- श्री शेवंडे जी के काव्यां व महाकाव्य के अवलोकन से ज्ञात होता है कि ये कालिदास की स्पर्धा ही लगे रहे | कालिदास ने दो महाकाव्य - रधुवेश ओर कुमार संभवं लिखा तो इन्होने तीन महाकाव्य विन्ध्यवासिनी विजय, शुम्भव्ध ओर देवदेवेश्वर महाकाव्य लिखा ।




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