हिन्दी साहित्य और साहित्यकार | Hindi Sahitya Aur Sahityakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
287
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी-साहित्य ] ६
हं कि सिद्ध साहित्यं का महत्व साहित्यिक इष्टि से उसके रचना-विधान के कारण, भाषा
कौ दृष्टि से तथा परवती साहित्य विशेष करसंत-साहित्यि पर पड़न वाले प्रभाव के कारण है । -
जन-साहित्य
बौद्ध धर्म के अभ्युदय के बाद ही जेन धर्मक्षीण होने लगा था और एक समय तो ऐसा
आया जब सर्वत्र ही जेन धर्म का हास दिखायी पड़ा । पर भारत में वह इस भांति जमा
कि आज भी जब बौद्ध धर्म भारत म विलुप्त प्राप हूँ, जैनियों की बहुत बड़ी संख्या यहाँ
निवास करती हे । बौद्ध धर्म के पतित हो जाने पर भी इसका व्यापक प्रभाव समाज
के कुछ वर्गों पर जमा रहा । यह धर्म बौद्ध धर्म की श्रपेक्षा हिन्दू धर्म से अधिक मेल खाता
है । इनका परमात्मा चित् और आनन्द का अ्रजस्र स्रोत है । उसका संसार से कोई
सम्बन्ध नहीं । वह तो परम आत्मा है । जीव भी अपने पौरुष से इस पदं की प्राप्ति कर
सकता हं । यही परम पदं जीवन का चरम साध्य भी हू ।
महाबीर के बाद ही जन घम मे विश्रह प्रारंभ हुआ ग्रौर भद्रबाहु ने दिगम्बर तथा
स्थूलभद्र ল श्वेताम्बर सम्प्रदाय की स्थापना की । श्वेताम्बर सम्प्रदाय कै जनौ स्वेत
वस्त्र धारण करते हं तथा दिगम्बर सम्प्रदाय वाल आत्मसंयम तथा साधना पर आस्था
रखते हू । ४५४ ई० मं देवषि गण ने समस्त जन साहित्य का आलेखन कराया । यह
कायं प्राकृत भाषा में हुआ । बाद में जैन सम्प्रदाय के साहित्य का सर्जन जन-भाषा
अपभ्रंश में होते लगा । अधिकाश दिगम्बर सम्प्रदाय का साहित्य अ्रपश्नर मे लिखा
गया जो हिन्दी के भ्रत्यधिक निकट है । भाषा विज्ञान की दृष्टि से इस साहित्य, का अत्यन्त
महत्व है । जन कवियों मे सर्वप्रथम स्वयंभ्देष का नाम लिया जाता है ।
स्वयंभूदेव न.केवल व्याकरण ग्रौर छन्द-शास्त्र के ज्ञाता थे अपितु एक साहित्यिक
भी थे। स्वयंभूदेव के निम्नलिखित चार ग्रन्थों की चर्चा की जाती है :---
(१) पउम चरिउ : या पद्म-चरित्र--जेन रामायण ।
(२) रिट्विसि चरिउ : या अरिष्टनेमि चरित, हरिवंद पुराण ।
(३) पंचमि चरिउ : या नाग कुमार चरित ।
(४) स्वथंभू छन्द ।
रावण को मृत्यू पर मन्दोदरी द्वारा किया गया विलाप इनकी रचना का एक श्रच्छा
ও है, जिसका अंश यहाँ दिया जाता है ।
| भ्राएंह सोश्रारिर्याहि अट्वारह हिव जवई सहासेहि ।
णव घण माला डंबरेहिंद्र छादड बिज्जु जमे चउपासेहि ॥॥
रोबेंह लंकापुर परमेसरि ।
हा रावण ! तिहुचण जण केसरि ॥॥
पड कणि समर , त्रुकहों दज्जई ।
पड विषु बालकौल कहो छज्जई
पद विण णयमह एक्कीकरणडं ५
को _ परिहैसदं कंठाहरणउ' ॥॥
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