हिन्दी साहित्य और साहित्यकार | Hindi Sahitya Aur Sahityakar

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Hindi Sahitya Aur Sahityakar  by सुधाकर पांडेय - Sudhakar Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी-साहित्य ] ६ हं कि सिद्ध साहित्यं का महत्व साहित्यिक इष्टि से उसके रचना-विधान के कारण, भाषा कौ दृष्टि से तथा परवती साहित्य विशेष करसंत-साहित्यि पर पड़न वाले प्रभाव के कारण है । - जन-साहित्य बौद्ध धर्म के अभ्युदय के बाद ही जेन धर्मक्षीण होने लगा था और एक समय तो ऐसा आया जब सर्वत्र ही जेन धर्म का हास दिखायी पड़ा । पर भारत में वह इस भांति जमा कि आज भी जब बौद्ध धर्म भारत म विलुप्त प्राप हूँ, जैनियों की बहुत बड़ी संख्या यहाँ निवास करती हे । बौद्ध धर्म के पतित हो जाने पर भी इसका व्यापक प्रभाव समाज के कुछ वर्गों पर जमा रहा । यह धर्म बौद्ध धर्म की श्रपेक्षा हिन्दू धर्म से अधिक मेल खाता है । इनका परमात्मा चित्‌ और आनन्द का अ्रजस्र स्रोत है । उसका संसार से कोई सम्बन्ध नहीं । वह तो परम आत्मा है । जीव भी अपने पौरुष से इस पदं की प्राप्ति कर सकता हं । यही परम पदं जीवन का चरम साध्य भी हू । महाबीर के बाद ही जन घम मे विश्रह प्रारंभ हुआ ग्रौर भद्रबाहु ने दिगम्बर तथा स्थूलभद्र ল श्वेताम्बर सम्प्रदाय की स्थापना की । श्वेताम्बर सम्प्रदाय कै जनौ स्वेत वस्त्र धारण करते हं तथा दिगम्बर सम्प्रदाय वाल आत्मसंयम तथा साधना पर आस्था रखते हू । ४५४ ई० मं देवषि गण ने समस्त जन साहित्य का आलेखन कराया । यह कायं प्राकृत भाषा में हुआ । बाद में जैन सम्प्रदाय के साहित्य का सर्जन जन-भाषा अपभ्रंश में होते लगा । अधिकाश दिगम्बर सम्प्रदाय का साहित्य अ्रपश्नर मे लिखा गया जो हिन्दी के भ्रत्यधिक निकट है । भाषा विज्ञान की दृष्टि से इस साहित्य, का अत्यन्त महत्व है । जन कवियों मे सर्वप्रथम स्वयंभ्देष का नाम लिया जाता है । स्वयंभूदेव न.केवल व्याकरण ग्रौर छन्द-शास्त्र के ज्ञाता थे अपितु एक साहित्यिक भी थे। स्वयंभूदेव के निम्नलिखित चार ग्रन्थों की चर्चा की जाती है :--- (१) पउम चरिउ : या पद्म-चरित्र--जेन रामायण । (२) रिट्विसि चरिउ : या अरिष्टनेमि चरित, हरिवंद पुराण । (३) पंचमि चरिउ : या नाग कुमार चरित । (४) स्वथंभू छन्द । रावण को मृत्यू पर मन्दोदरी द्वारा किया गया विलाप इनकी रचना का एक श्रच्छा ও है, जिसका अंश यहाँ दिया जाता है । | भ्राएंह सोश्रारिर्याहि अट्वारह हिव जवई सहासेहि । णव घण माला डंबरेहिंद्र छादड बिज्जु जमे चउपासेहि ॥॥ रोबेंह लंकापुर परमेसरि । हा रावण ! तिहुचण जण केसरि ॥॥ पड कणि समर , त्रुकहों दज्जई । पड विषु बालकौल कहो छज्जई पद विण णयमह एक्कीकरणडं ५ को _ परिहैसदं कंठाहरणउ' ॥॥




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