आर्य्य महिला | Aaryy Mahila

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भ्रोभगवट्ठी ता हिन्दी पानुवाद श्रीमोहन वैरागी - गताछुप्ते आगे रे भ्रौर कहा हे पाथे लखो ये खड़े समरमें कोरववीर । लड़नेको उत्सुक हैं. सारे मरनेको हो रहे श्रधघीर ॥। रद केशवके ऐसा कहने पर. लखा पाथने दोनों सैन्य । सभी श्रोर आत्मीय-स्वजन थे सुह्दू सखा सन्मित्र अनन्य ॥। र७ चाचा ताऊ झ्रोर पितामह पूजनीय आचायें अवध्य । मामा श्रात-पुत्र पोत्रादिक सम्बन्धी सब थे रणमध्य ॥। रद यों सब्र स्वजन सामने लखकर हुआ धनखयको अवसाद | शोकाइल होकर केशवसे कहने लगे पाथ सबविषाद ॥ अजनने कहा-- ९६ लखकर इन झात्मीय स्वजनको शिथिल हो रहा मेरा गात । काँप रहा तनु सूख रहा मुख श्रान्ति हो रदी मुझको तात ॥। दे फिसल रहा गाणडीब हाथसे हाय जल रही त्वचा झपार। शक्ति न मुझमे स्थिर रदहनेकी अहो विकृत हो रहे विचार ॥। ं ६ है लक्षण सब विपरीत देखता--रणमें इन स्वजनोंके प्राण । _ लेकर हे गोविन्द मुक्ते तो नहीं देख पड़ता कल्याण ॥। ... हँ चेन नहीं चाहिये केशव मुभको विजय तथा प्रथ्वीका राज्य । क्या होगा ऐसे जीवनसे क्या होगा यदद सुख साम्राज्य ॥ ऋरमश




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