श्रीरामचरितमानसकी भूमिका | Shreeramcharitmanaski Bhoomika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shreeramcharitmanaski Bhoomika  by श्रीरामदास गौड़ - Shreeramdas Gaud

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीरामदास गौड़ - Shreeramdas Gaud

Add Infomation AboutShreeramdas Gaud

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
शिक्षा और व्याकरण ५ 0 वि ^ 0) এসি সিউল = कणर सममा । प्रबोध तमी रोगा, जव मे अपनी भाष्ामे कहूगा | হত एक विशेष लाभ भी है, कि सगवानके चरित बखानकर में अपनी वाणीको पवित्र करू'गा। चतुर कवि भगवानका शुणगान करके अपनी वाणीको पवित्र करते हैं। भाषामे प्राकत जनोंका शुणगान करनेसे सरस्वती अप्रसन्‍्न हो जाती हैं |” गोस्वामी जीने यह युक्ति इसलिये दी, कि उनसे पहलेके अनेक कवियों राजाओंकी प्रशा, रद॑सोंकी खुशामदमे अपनी कथिनाक्छा दुङ- पयोग किया था। साथ ही यह भी स्मरण रहे, कि आजकलकी तरह साढ़े तोन सो बरस पहले भी संस्कृतके प्रकांडपंडित “जाषा”को हैय द्ृश्सि देखते थे। संस्कतके परिडतोंकी यह प्रवृत्ति इतनी हो पुरानी नहीं हे। घम्मभपदकी “भोवादियों” वाली बात ढाई हजार बरस पहलेका पता देती है। गोस्वामीजी भक्तों ओर परिडतोंके बीच रहते थे। रईसोंके दरवाश्दार न थे | परिडतोंकी रायका उन्हें बड़ा खाल था। ऐसा होते हुए भी सैसर्गिक कवित्वशक्ति उन्‍हें भाषा कविताकी ओर खॉींसे लिये जाती थी और देशकालकी आवश्यकता भी भाषाके ही पक्षमें थी | इस दृष्टिले भो गोस्वामोज्ञीकों माषा-पक्ष-समयथेनक्री आच- अयकता थी | ३-मानसकी भाषाका खान रामचरितमानसकी भाषा प्रधानतः अवधी है। यह प्रायः वही भाषा है, जिसमें गोस्पामीजीके कुछ पूर्व मलिक मुहम्मद जायसीने पदमावत लिखी । पदमावत की भायामरे ओर रामचरित- मानसकी भाषामे कुछ अन्तर है। परन्तु चह व्याकरणका' नहीं शेलीका अन्तर अवश्य है | पदमावत जहा शद्ध तद॒भवस्थ है, वहा गामचरितपानस अड्ध तत्समोंसे भरा है । गोस्पामीजी कठनेका तो कहने हें, कि हमारी मपा गंवारू हे, पर उनकी शेठी चसूतुत अधिक परिमार्जित है। उनकी साथा विद्वानक्ती लिखी ग्रामीण भाषा है, उसमें संस्कृत काव्यकी अज्ुकरण पयोत रुपसे है। जहां




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now