भारतीय राजनीति में राज्यपालों की भूमिका नेहरू के पश्चात मध्यप्रदेश के विशेष सन्दर्भ में सूसी | Bhartiya Rajniti Me Rajyapalo Ki Bhumika Nehru Ke Pashchat Madhyapradesh ke Vishesh Sandarbh Me

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 प्रश्न 16 सरकारिया आयोग की सिफारिशो को लागू करने से क्या राज्यों में स्थिति सुधरेगी? लगभग सभी ने स्वीकार किया कि इन सिफारिशों को लागू किया जाना चाहिए | प्रश्न 17 क्या राज्यपाल को राज्य के मंत्रिपरिषद और राष्ट्रपति (केन्द्र सरकार) के आदेशों का निर्विरोध पालन करना चाहिए? क्या राज्यपाल राज्य सरकार और केन्द्र सरकार का एक रबर स्टाम्प है या उसे कुछ स्वविवेकी अधिकार भी है? हॉ 60 नही , 15 कह नहीं सकते .. , .5 अधिकांश ने कहा कि राज्यपालो के कोई स्वविवेकी अधिकार नहीं है। उसे या तो अपने मंत्रिपरिषद्‌ या राष्ट्रपति के आदेशों, निर्देशों, और परामर्शों का पालन करना पड़ता है। किन्तु कहा कि राज्यपालों को कई स्वविवेकी अधिकार भी हैं - () जब किसी दल का विधान सभा में बहुमत न हो (॥) किसी दल का विधान सभा में बहुमत तो हो किन्तु उसका कोई मान्य नेता न हो | एक दो सदस्यो ने यह विचार भी व्यक्त किये कि राज्यपाल को अपना आत सम्मान कायम रखना चाहिए ओर परामर्श के लिये बार-बार दिल्ली नहीं दौड़ना चाहिए} इससे राज्यपाल के साविधानिक पद का अवमूल्यन होता है। प्रश्न 18 क्या राज्यपाल के पद पर राजनैतिक दलों के सदस्यों को ही नियुक्तं किया जाना चाहिए? हाँ... | 50 नही . .. , , . 20 कह नही सकते , 10 अधिकांश उत्तरदातार्ओं का यह मत था कि राजनीतिज्ञ को ही इन पदों पर नियुक्त करना चाहिए । राज्यपाल को अधिकांश निर्णय राजनैतिक ही लेने पड़ते है। फिर राज्य के अधिकांश आन्दोलन राजनैतिक होते हैँ! राज्यपाल को राज्य की राजनैतिक स्थिति पर राष्ट्रपति को रिपोर्टिंग देनी होती है। यदि वह स्वयं राजनीतिज्ञ नही है तो इन राजनैतिक घटनाओं की उचित रिपोर्टिंग नहीं कर सकता। एक कुशल डाक्टर, इंजीनियर, व्यापारी, शिक्षक राज्यपाल के पद पर विफल ही होगा। कुछ लोगों ने कहा कि राज्यपाल को विशेषज्ञ होना चाहिए - यदि वह कुशल इंजीनियर , डाक्टर, शिक्षक, व्यापारी रहा है तो वह इन क्षेत्रो में विशेष योगदान दे सकेगा |




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