नैषधीय चरितम महाकाव्य में ध्वनितत्त्व एक अध्ययन | Naishadheeya Charitam Mahakavya Mein Dhwanitattwa Ek Adhyayn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीहर्ष ने अपने महाकाव्य के 'पंचमसर्ग” में जिस विजयप्रशस्ति' का उल्लेख किया है, संभवत: वह जयन्तचन्द्र के पिता विजयचन्द्र की प्रशंसा में लिखा गया होगा। विजयचन्र का अंतिम शिलालेख ११६३ ई० का है। उपर्युक्त विवेचना के आधार पर डा० बूलर ने सर्वप्रथम श्रीहर्ष के समय के बारे में खोज की और वे इस परिणाम पर पहुंचे, कि महाकवि श्रीहर्ष राजा जयन्तचद्ध के आश्रित कवि थे। जयन्तचन्द्र ने ११६३ से ११७७ ई० मध्य में राज्यारोहण किया होगा, क्‍योंकि उनके पिता का अन्तिम शिलालेख १९६३ ई० का है और उनका प्रथम दानपत्र १९७७ ई० का है। खण्डनखण्ड--खाद्य' की एक उक्ति से श्रीहर्ष का समय निश्चित करने में बहुत कुक सरता हो जाती है। खण्डनखण्डखाद्य में एक स्थान पर श्रीहर्ष ने बहत आदर के साथ व्यक्ति विवेककार महिमभट का उल्केख किया है । ° महिमभट का समय अभिनवगुप्त के पश्चात्‌ पडता है, ° क्योकि अभिनवगुप्ताचार्य का महिमभट् ने व्यक्तिविवेक में उद्धरण दिया है। > अतः महिमभट का समय १०२० ई० के बाद माना जा सकता है ओर श्यक्तिविवेक' की टीका १. दोषं व्यक्तिविवेकेऽमुंकविलोकलोचने। काव्यमीमांसिष प्राप्तमहिमा महिमाऽदूत। खण्डन ०, पृ १३२४७ २. जिनका साहित्यिक जीवन ई० ९८० से ई० १०२० तक माना गया है। डा० पीण्वी० काणे हिस्र ओंफ संस्कृत पोयरिक्स प° २३२ नवीन संस्करण १९५९१ ई०। ই. अत्र केचिद्‌ विदूवमानिनः ...-.----- मन्यमानाः । व्यक्त्य इति दिवचमेदमाह .... यद्यप्यविवक्षितवाच्ये शब्द एवं व्यंजक सहकारिता दुट्यति। यदाहु स्तद्प्रान्वूलम्‌ इत्यादि। ध्वन्यालोकलोचन पृ० ३३ (काव्यमाला १८९१ ई०) से उद्धृत व्यक्तिविवेक [8]




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