हरिवंश राय बच्चन के काव्य में प्रेम की अभिव्यंजना का स्वरूप | Haribansh Rai Bachchan Ke Kavya Me Prem Ki Abhivynjana Ka Swarup

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Haribansh Rai Bachchan Ke Kavya Me Prem Ki Abhivynjana Ka Swarup  by अजय कुमार - Ajay Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कंहानीकार पर कवि की विजय : इन वर्षों में बच्चन कहानी और कविता दोनों लिखते रहे वास्तव में वे स्वगं कहानीकार बनना चाहते थे। इसी सन्दर्भ में कहानियों का एक संग्रह तैयार किया और हिन्दुस्तान अकादमी को प्रकाशनार्थ भेजा परन्तु वह अस्वीकृत होकर वापस आ गया। निराशा में कहानियाँ फाड़ डाली और मात्र कविता की दिशा में ही प्रवृत्त हुए। 1932 में पहला काव्य संग्रह तेरा हार के प्रकाशन से कवि को और प्रोत्साहन मिला। पत्र-पत्रिकाओं में तेरा हार - की आलोचना छपी। “प्रताप” ने लिखा कविताएं उत्तम भावों से परिपूरित है। वीणा ने लिखा- बच्चन उन छिपे हुए सुकवियों और सुलेखकों में है जिनकी प्रतिभा का फूल खिलकर भी अपने आपकमें छिपा रहना चाहता है।' प्रारम्भिक रचनाएं भाग 1-2 कवि की विवश॒ता की अभिव्यक्ति थी। वे कविताएं नहीं थी, वे कविता से कुछ बड़ी चीज थी, वे जीवन थी।‡ अपने कवि होने का बढ़ता एहसास- भाग्य पटल पर विधि ने लिख दी कवि की जटिल कहानी।” कवि को अपने गीतों के प्रति सहज अनुराग की ओर ले गया। एक संघषेरत मानव जबं सहज प्रतिभा सम्पन्न कवि बनने की प्रारम्भिक प्रक्रिया से गुजरता है तो उसकी जीवनगत परिस्थितियाँ और मनःस्थितियां कैसे काव्य बन जाती है, इसका सीधा सच्चा निदर्शन प्रारम्भिक रचनाओं से मिल जाता है। खेयाम का खुमार : विश्वविद्यालय छोड़ने के बाद कवि के जीवन में जो संघर्ष प्रारम्भ हुआ था और इस बीच वह जिस तरह के अकेलेपन ओर मानसिक - शारीरिक अतृप्ति से जूझ रहे थे, रूबाइयतउमर खैयाम उनके प्राणों की पुकार बन बैठी। एक-एक কথাই से उन्चका हृदय सहज ही द्रवित और परिप्लावित होने लगा और भावनाओं के इसी সওম পানর হাক এ, আতর পাট, পা ও৯ পপ ৩ উস খা এ+ পা উড নার থা তাত এ पि ওটাকে 1. बच्चन: क्या भूलूँ क्या याद क, पू0-218 2 . बच्चन : प्रारम्भिक रचनाएँ, बच्चन रचनावली-3, पृ0- 554




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