मंखन के श्रीकण्ठचरितम का साहित्यिक अध्ययन | Mankhak Ke Shrikanthacharitam Ka Saghityik Addhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क. द प्रवेश होता गया ।भारवि, भटिट, माघ, श्रीहर्ष आदि महाकवियों ने कालिदास की सरल शैली का परित्याग कर चित्रालड्कारों की विविधता एवं भाषायी चमत्कार से परिपूर्णं महाकाव्यों का प्रणयन किया । यद्यपि आनन्दवर्धन जैसे सहृदय सम्राट को इन कविताओं मे कोई रस न मिला, क्योकि ध्वनि को काव्य की आत्मा स्वीकार करने वाले इस आचार्यं को ध्वनितत्व के अभाव में कैसे रूचि हो सकती है, किन्तु भारवि, भटिट, माघ एवं श्रीहर्ष के समय मे भारतीय चिन्तन की सभी विधां मेँ सरल रीति का परित्याग कर दिया गया था तथा शास्त्रीय सिद्धान्तो के प्रति -पादनों में कठिन एवं दुरूह भाषा को ही महत्त्व दिया जाने लगा अतः ये कवि भी तत्कालीन समाजे की कृत्रिमताओं से कैसे विमुख हो सकते थे । इतना ही नही काव्यो मेँ व्याकरण, साहित्य एवं दर्शन के विभिन्न सिद्धान्तो के प्रतिपादन मेँ इन कवियों ने काव्यों को बोझिल एवं दुरूह बना डाला इस तथ्य को स्वतः स्पष्ट करते हुए महाकवि भटिट ने कहा भी है - व्याख्यागम्यमिदं काव्यमुत्सवः सुधियामलम्‌ । हता दुरमेधस्तत्र विद्रतुप्रियतया मया ॥ अर्थात यह काव्य व्याख्या के आधार पर ही समझा जा सकता है। इसमे विद्वानों की ही गति हो सकती है। इसी परम्परा में महाकवि मंड.खक द्वारा रचित श्रीकण्ठचरितम्‌ महाकाव्य को रखा जा सकता है। किन्तु इसका यह कथमपि अभिप्राय नहीं हो सकता कि इन काव्यो में दुरूहता एवं बोझिलता ही प्रधान है जिससे इन्हें नीरस मान लिया जाय । वस्तुतः ये कवि अर्थगाम्भीर्यं से परिपूर्ण वचनों के विन्यास में पटु है । इनकी वाणी सुललित पदों के प्रयोग से अटी पड़ी है, रमणीय वर्णो से विभूषित है एवं किसी भी सहृदय के हृदयसरोवर को अमन्दानन्दोल्लास से उद्वेलित करने में समर्थ है । इनके वर्णन की शैली अतीव प्रौढ है । नूतनतम पदों के प्रयोग मेँ ये सिद्धहस्त हँ । इनके वर्णनों में अलड-कारों तथा भावों का अद्भुत समन्वय भी देखने को प्राप्त होता है । अपने इन्हीं गुणों के कारण भारवि आदि महाकवियों के महाकाव्य प्राचीन काव्यशास्त्रियों तथा आधुनिकः समालोचकों के विवेचन के विषय बनते रहे है तथा अद्यावधि साित्य-लेखन के स्नोत के रूप में स्वीकृत हैँ ।




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