निराला रचनावली | Nirala Rachnawali8

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म उन्हांने तुलसीदास पर अपनी प्रसिद्ध प्रव कविता लिखी. तुलसीदास हर सामस का एक सुन्दर टाका लिखने का विचार निराला क॑ मन में बहुत पहले से था। 15 दिसम्बर 1927 के पत्र में उन्होंने आचार्य शिवपुजन सहाय को जब वे हिन्दी पुस्तक भण्डार लह्ेरियासराय से सम्बद्ध थे लिखा था आपके चहाँ क्या रंग है पुस्तकें निकलती है या नहीं रामायण की टीका कोई लिखबाना चाहते है या नद्दीं और जो नई बातें हों लिखिए । बाद में जब वे गंगा-पुस्तकमाला में काम करने लगे उन्होंने दुलारेलाल भागंव को सुझाया कि रामायण का एक बुहुद सचित्र संस्करण निकालें टीका निराला लिखेंगे स्थायी सूल्य की चीज़ होगा बड़ा लाभ होगा । उपयुक्त पु. 188 सुधा के साच 1932 के में श्री दुलारेलाल भागंव ने तुलसीकृत रासायण का सटीक और सचित्र बहुढू संस्करण नीष॑क संपादकीय टिप्पणी लिखी और टीका के प्रकाशन की योजना प्रस्तुत को । पुनः अगस्त 1932 के अंक में रामायण का बहुत सस्करण शीर्षक सम्पादकीय टिप्पणी में उन्ह्ोते लिखा श्ावण-शुक्ल सप्तमी को श्री गोस्वामी तुलसी दासजी की रामायण का एक बृहतु सचिच सस्करण प्रेस मे छपने को हमने दे दिया है । यह संस्करण 20 भागों में 4 भाग प्रतिवर्ष के हिसाब से निकलकर 4 वर्षों में पुरा प्रकाशित होगा |. क्रमश 1935 ई. संवत्‌ 1991 वि. और 1936-37 ई संबत्‌ 1993 वि. में रामायण की टीका के प्रथम दो स्वण्ड धर्म ग्रन्थावली के अन्तर्गत गंगा-पुस्तकमाला-कार्यालय से प्रकाशित हुए । प्रथम खण्ड में मानस के मंगलाचरण से लेकर पुलक बाटिका बाग बत सुख बिह्मारु । साली सुमन सनेह-जल सींचत लोचन चारु। इस दोहे तक की टीका दी गयी थी भर ट्िंतीय खण्ड से उसके आगे से लेकर नाथ उसा मम प्रान सम किकरी करेहू । छमेहू सकल अपराध भव होइ प्रसस्त बस देह ॥ इस दोहे तक की । उसके बाद टीका का कोई लण्ड न निकला जिससे स्पष्ट है कि मानस के जिन अंगों की टीका की गयी वे उसके बालकाण्ड के ही अश है और आरम्भिक एवं थोड़े-से अंश । टीका संक्षिप्त एवं साधारण है । उसमें जी अन्तर्क॑थाएँ दी गयी है वे अवदथ विस्तृत हैं और निराला की गद्य-लेखन की क्षमता का परिचय देती है । श्री भार्गव में बहुत प्रयास किया कि निराला से सानस की रारी अन्तकंथाएँं लिखा लें लेकिन ऐसा लगता है कि श्रपेक्षित पारिश्रमिक ने मिलने के कारण निराला ने बाद में उस काम में रुचि नहीं ली । 22 जुलाई 1937 के पत्र में थे श्री भार्गव को लिखते हैं रामायण में बहुत पड़ती है। पिछली दो श्यूखलाएं जो मैंने तेयार की हैं हुर-एक के लिए कया मिला सुचित करने की कृपा करें तो मुझे मालूम हो जायगा कि पारिश्रमिक से किसी तरह पुरा पड़ेगा या नहीं । पुनः वे 24 जुलाई 1937 को उन्हें लिखते हैं मैं तो आपसे यह जानना चाहता था कि गत दो अंकों की अन्तकंथाओं के लिए आपने क्या-क्या डिया है लिखें । आप इस पर या तो पर्दा डालते है या हिसाब ही नहीं किया | कृपया लिखें । इसी तरह का बाद का भी निराला का एक पत्र है जिसमें उन्होंने श्री भार्गव से कहा है रामायण का काम मिह्नत ज्यादा लेता है मजदूरी कम देता है। अगर कराएँ तो इस हिसाब में 500 शीघ्र भेजें । 7 दिसम्बर 12 / निराला 8




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