समन्वित ग्रामीण विकास | Integrated Rural Development
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42 MB
कुल पष्ठ :
594
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५८५
अतः क्षेत्र विशेष में उनकी स्थिति एवं उनके स्वरूप तथा उनके द्वारा प्रदत्त सेवाओं का
निर्धारण एक मूलभूत प्रश्न है । विश्व रैक द्वारा प्रतिपादित कार्यात्मकं समन्वय की नीति
संयुक्त राष्ट्र संव से सम्बन्धित विभिन्न विकास संगठनों द्वारा प्रतिपादित ग्रामीण
आधुनिकीकरण की नीति तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सी द्वारा
प्रतिपादित भूवैन्यासिक विकास की नीति आदि सभी कमोवेश, ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों
के मध्य अग्रगामी एवं प्रष्ठगामी अंर्त्तम्बन्धों को स्वीकार करती है तथा प्रकीर्णं परन्तु
अंतर्सम्बन्धित विकास केन्द्रों एवं सक्षम अन्योन्य क्रिया से सम्बद्ध भूवैन्यासिक तंत्र के
विकास पर बल देती है । ' ग्रामीण विकास में नगरीय कार्य ' उपमागम भी ग्रामीण
समुदायों के जीवन स्तर में सुधार तथा उनके आधुनिकीकरण हेतु नगरीय सेवाओं, सुविधाओं
एवं उपयोगिताओं को, एक सक्षम अन्योन्य क्रिया मुक्त भूवैन्यासिक संगठन द्वारा सेवा
केन्द्र पदानुक्रम का अनुसख करते हृए प्रदान करने के नियोजित प्रयास को आवश्यक
बतलाया है ।
विधितंत्र एवं अध्ययन उपागम :
समन्वित ग्रामीण विकासं का सिद्धानत सम्यक् रूप भ समाज के सभी वर्गो `
एवं सामाजिक - आर्थिक पक्षों से सम्बन्धित है जिसे हमारे नियोजकों, अर्थशास्त्रियों,
भूगोलवेत्ताओं एवं समाजविदों ने विकास को एक सशक्त माध्यम के रूप में स्वीकार
किया है । इस दिशा में उपयुक्त विधितंत्र के निर्धारण के लिए विविध संसाधन एवं
विद्वानों द्वारा अध्ययन तथा इसके संदर्भ: में शोध निबन्ध प्रस्तुत किये गये हैं जिसमें
मुख्यतः नेशनल इंस्टीच्यूट आफ रूरल डवलपमेन्ट [हैदराबाद], इण्डियन इन्स्टीच्यूट आफ
पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन [नई दिल्ली, सेन्ट्रल रिसर्च एसोसिएशन आफ बालन्टरी एजेन्सी
फार खूरल डेवलपमेन्ट, इंडियन स्टेटिस्टिकल इन्स्टीच्यूट [नई दिल्ली! समन्वित ग्रामीण
क्षेत्रीय विकास केन्द्र, बी0एच0यू0 [वाराणसी], इन्टीग्रेटेड रूरल एरिया डेवलपमेन्ट प्रोजेक्ट,
तहसील रसड़ा, जनपद बलिया हडा0 सुरेन्द्र कुमार सिंह, अध्यक्ष भूगोल विभाग, उदय
प्रतरप कालेज, वाराणसी ह, विकास खण्ड सार, जनपद ˆ देवरिया (अरविन्द कुमार
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