ऋग्वेद के पंचम मंडल का आलोचनात्मक अध्ययन | Rigved Ke Pancham Mandal Ka Aalochanatmak Adhyyan

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Book Image : ऋग्वेद के पंचम मंडल का आलोचनात्मक अध्ययन  - Rigved Ke Pancham Mandal Ka Aalochanatmak Adhyyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनुवाक्‌ मे भी एक वश के ऋषियो के सक्त रखे गये है। यदि ऋषि के सक्त की सख्या कम है तो उन्हे अलग अनुवाक्‌ मे रखा गया हे जबकि अष्टको, अध्यायो एव वर्गो का प्रारम्भ एव समापन बिना किसी नियम के हो जाता हे। शानक के अनुसार ऋग्वेद मे १०४८० १/८ मन्त्र है जब कि चरण्यव्युह के अनुसार १०६८१ मन्त्र हे। सम्प्रति ऋग्वेद मे १०८९२ मन्त्र, १८२३८२६ शब्द तथा ४२३२००० अक्षर प्राप्त होते है। १.६ ऋग्वेद का काल -निर्धारण- ठोस साक्ष्य न मिलने के कारण ऋग्वेद का कालनिर्धारण अत्यन्त दुष्कर कार्य है। सक्षेप मे कुछ विद्वानों का निष्कषं विचारणीय हे। वेद को अनादि ` एव सुष्टिपूर्वं माना गया हे। बालगगाधर तिलक ने ज्योतिष के आधार पर ऋग्वेद क़ काल ६०००४००० इ० पृ० माना ह। अविनाश चद दास ने भूगोल का आधार मानकर ऋग्वेद का काल लाखो वर्ष पर्व होना निश्चित किया ह। मैक्समृलर ने १२०० ई०प्‌० ऋ्वेद का काल निर्धारितं किया था। उसे निर्धारण के ३० वर्ष पश्चात्‌ भक्समुलर ने ऋग्वेद को ३००० ई० पृ० से पहले का माना है। मैकडानल ने १३००१००० ई० पृ० व्यलर नै २००० ई० पृ०, याकोबी ने ३००० ई० प°, ध्रेडर ने २००० ई० प° का ऋग्वेद को माना हे। काल निर्णय के विषय मे ऋण्वेद का ई० प° होना एकमत से स्वीकारा गया हे। ऋग्वेद के सभी मन्त्रो की रचना एक समय मै नही हुयी। २ से ७ मण्डल अधिक प्राचीन है जबकि प्रथम ओर दशम- मण्डल परवर्ती माना गया हे। ऋग्वेद = काल निर्धारण के विषय मे बेबर का कथन उचित ही है ~ 0166 € क्षार ५५८ 00101 [110 ५५। वेदिक साहित्य के अन्तर्गत १६५१ ई० मे अब्राहम रोजन ने ब्राह्मण साहित्य पर पुस्तक लिखी। हेनरी थोमस कालिद्रुक ` ने वेदो पर सक्षिप्त निबन्ध लिखा। १८०८ ई० मे एीडिक श्लीगल ने भारतीय भाषा विज्ञान पर पुस्तक ` लिखी। इस पुस्तक मे भाषा विज्ञान के अतिरिक्त रामायण, महाभारत, अभिज्ञानशाकुन्तलम्‌ तथा मनुस्मृति के कुठ अशो का अनुवाद है। वेदाध्ययन की दृष्टि से १८२८१८६२ महत्वपूर्णं रहा। १८३८ ई० मे एडक रजन ने ` ~ अनादिनिधाना नित्या वागुसृष्टा स्वयभुवा। आदौ वेदमयी दिव्या यत सवाँ प्रवृत्तय नाम रूप द भुतीना कर्मणा च प्रवर्तनम्‌ वेद शब्टभ्य एवाठे निर्ममे स महेश्वर ॥ पवष तु नामानि कर्माणि च पृथक्‌ पृथक्‌। वेदशब्देभ्य एवादौ पुथक्सस्थाश्च निर्ममे॥” ब्रह्म-सत्र १३/२८। क 00ल€ा1-0€फा€ 101 [लि च्ल हला £650600010 । ()1 112 ४८०४५ | 1 ए [छ&ावाल 5छाबजाल (70 ज़त्ंज्ञालां वश 11019-010 810-215 2017 868701700000 कल ११ | 4১11017100791-01006




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