शतपथ ब्राह्मण का सांस्कृतिक अध्ययन | Shatpath Brahaman Ka Sanskritik Adhyayan

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Shatpath Brahaman Ka Sanskritik Adhyayan by गुलाब चन्द्र दुबे - Gulab Chandra Dubay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 (5) राजा का युद्ध प्रस्थान “तद्यथा महाराज पुरस्तात्सेनानीकानि प्रत्युद्याभय पन्थनमन्वितयात्‌ । | अर्थात जिस प्रकार एक वडा राजा सवसे अगे सेना के अग्रभाग को करके निर्भय को कर मार्ग को तय करता हे, इससे ज्ञात होता है कि क्षत्रिय सम्राट युन्दर मे नाते समय सेना के अग्रभाग को आगे रखते है। (ग) वैश्य वेश्य काल मे वैश्य के लिए अर्यं पद का उल्लेख आया हे । गृहस्थ के लिए गृहपति शब्द है। मौर्य शुग युग मे गृहपति समृद्ध वैश्य व्यापारियो के लिए प्रयुक्त होने लगा था, जो बौद्ध प्रभाव को स्वीकार कर रहे थे। उन्हीं से वैश्य प्रसिद्ध हुए। वेश्यो का वर्णन ब्राह्मण ग्रन्थो मे कम मिलता है। एतरेय ब्राह्मण मे वैश्यो के लिए कहा गया है कि- “राष्टराणि वै विश ” (ऐ0 ब्रा0- 826] अर्थात्‌ वेश्य ही राष्ट्र हे वैश्य के धन कमाने पर ही राज्य मेँ सब वणों का काम चलता हे। (घ) शूद्र वैदिक काल मे दो प्रकार के श्रो का उल्लेख किया जाता है- पहला अनिखसित जो हिन्दू समाज के अग थे, ओर दूसरे निखसित। पतजलि का विशद भाष्य शूद्रो की शुग कालीन स्थिति का परिचायक है। “अनिखसित शूद्र वे है जो आर्यावर्तं की भौगोलिक सीमा के भीतर रहते हे” इसके विपरीत पतजलि ने आर्यावर्त की सीमा के बाहर के शूद्रो मे कुठ विदेशियो का उल्लेख किया हे! जैसे शक ओर यवन । पतजलि के समय की ऐतिहासिक स्थिति मे शक लोग इरान और अफगानिस्तान की सीमा पर शक स्थान मे जमा थे, ओर यवन अर्थात्‌ यूनानी लोग बाल्हीक ओर गाधार मे प्रतिष्ठित थे। इसी पर आधारित पतजलि का दूसरा उदाहरण “किष्किन्धागव्दिक” है।




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