प्रेमचन्द के साहित्य में शिशु मनोविज्ञान | Premchandra Ke Sahitya Me Shishu Manovigyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
84 MB
कुल पष्ठ :
521
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'विश्वथ-प्रवेश
अब हूँ, লজ
प्रेमचन्द के साहित्य का विवैच्य-विषय
ডক कक कक न # ৪ কি
प्रेमचन्द कर पूर्वं उपन्यास साहित्य की सृष्टि मात्र जीवन
की कुतुहलजनक परिस्थितियां के टेन्द्रणाडिक चक़॒व्यूह में विविध प्रकार की
'जिज्ञासाओं से परिप्रण धी । मनौरंजन के साथ भकुतुहल की सृष्टि ही उपन्यास
कला यें मैझठण्छ की मॉँति स्थिर रहती थी । कल्पता-छौक के पत्रों, रोमांच-
कारी प्रेम के प्रसंगों और इन्द्रधपुजी वर्णन वैचितश्रग से ही उपन्यास कला' समृद्ध
होती आ एही थी । ज्रीनिवासदास दागरा दिल्ली के बाजारों में होने वाठ
'क्रिय।-कछाप, राघाकृष्ण वास जोर बाह्कृष्ण मट दारा सामाजिक उन्व ~
पविश्वासोँ और कुरीतियों पर छुठाराधघात द्वारा इन्दी विकृष्ट सामाजिक
'विकृत्तियाँ के निरुपण मैं उपन्यास साहित्य का आदर्श समका जाता था |
घटनाबों के घटाटोध और ভুত प्रसंगाँ में जीवन के कल्पना-लछौक की
माकी मात्र ची | प्रेमचन्द में पहली बार मानवता के यृत्याँ को स्थिर करते
हुए घटनाओं के घटाटौप से खरित्रों का चित्रण करते का भगीरथ प्रयत्म किया।
समाज की हका कौ पार के माव्यम् से भिन्न-भिन्न परिवेशों में प्रस्तुत कर
समाज की व्यवस्थित परणही कयै स्त्थिर् ছলে ঈ लिए उन्होंने मनौविज्ञान कप
काजध छिया | पिभिन परिस््थितियाँ के पाज़ और जीवन के संघातों से उत्पन्न
सममौ विज्ञान की विविव सरतजिया प्रेमबन्द की उपन््यास-कछा का आधार बनी |
मानद जीवम् कल्पा -लौक से उतर कर खमाज, की स्वस्थ साव-्सूमि पर प्रशस्त
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