आधुनिक समीक्षा कुछ समस्याएँ | Aadhunik Samiksha kuch Samasyaen

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Aadhunik Samiksha kuch Samasyaen by देवराज - Devraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पे आधुनिक समीक्षा करने वाले चतुर पुरुष-पुद्धवों का जो चित्र सींचा है वह्‌ श्राज भी उतना ही सत्य है: ध निव्यमुद्तदंडः स्यान्नित्य॑. बिद्वतपोरुष: | त्रच्छिद्रश्छिद्रदशीं स्यात्परेषां विवरानुग ¦ | वहेदमिचं स्कन्धेन यावक्तालस्य पययः | ततः प्रत्यागते काले भिच्ाद्‌ घटमिवाश्मनि ॥ प्रहरिष्यन्‌ प्रियं ब्रूयात्‌ प्रहरन्नदि मारत। प्रहस्य च कृपायीत शोचेत च स्देतचच॥ वाचा ग्ृशं विनीतः स्याद्‌ हृदयेन तथा ज्रः | स्मितपूर्वाभिमाषी स्यास्षटो रदरेए कमणा ॥ नाछि्जवा परमर्माण नाकृत्वा कम॑ दारुणम्‌ | ना ह्वा मस्स्यघातीव प्राप्नोति महतीं श्रियम्‌ | अर्थात्‌ हमेशा डश्डा तैयार रखे, ओर पौरष प्रकट करता रहे । दूसरों की कमजोरियाँ देखे, ओर उन से फायदा उठाये; स्वयं छिुद्रसुक्त दो | समय पड़ने पर शन्नु को कन्धे पर बिठा कर ले जाय; मोका आने पर उसे वैसे ही तोड़ दे जेसे पत्थर पर घड़ा | प्रद्मर करना हो तो मीठा बोले; प्रहार करते हुये ज्यादा मीठा; प्रहार करके करुणा प्रकट करे और रोये | वाणी से नम्न हो, हृदय से छुरे-जेसा; मयंकर कर्म करना हो तौ मुस्करा कर बात करे । दूसरों का নল छेदन किये बिना, भ कर कर्म किये बिना, मछुए की माति हत्या किये बिना-- कोई धनी नहीं बनता |? इन पदयो का यह श्रर्थ नहीं लगाना चाहिए कि महाभारतकार हमें दम्भी भ्रौर कूर बनने की प्लरणा दे रहे हें। जिस महाभारत में ऐसे इलोक हैं उसी मं भगवद्गीता-जेसी चोज़ें भी हैं। अत्यन्त ऊंची और नितान्त निकृष्ट, दोनों मनोवृत्तियों के पूणं चिच्र महाभारत में पाये जाते हे । महाभारतकार किसी हल्के श्रथ में अदर्शवादी नहीं है । ल्यूकेक्स ने अपनो पुस्तक में एक महत्त्वपूर्ण प्रइन नहीं उठाया है--क्ष्यों टॉल्स्टॉय, जिनके कुछ विचार (उक्त लेखक के अनुसार) उतने सही नहीं है, गोकों (और बात्जक) की श्रपेक्षा एक महत्तर कलाकार है ? त्युकक्स ने इस तुलनात्मक सत्य को महसूस किया है, यद्यपि स्पष्ट क्षब्दों में कहा नहीं है। यदि वह इस स्थिति पर विचार करता तो. सम्भवतः साहित्य के वारे मे कु श्रोर महत्वपूर्णं तथ्य देख पाता! तब शायद वह देखता कि टल्सृटांय के पात्र सामाजिक होते हए भी, सामाजिक संघर्षो मे पड़ते हुए भी, गोर्को




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