पूर्वी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान साम्प्रदायिकता का विकास | Purbi Uttar Pradesh Me Rastriya Andolan Ke Dauran Sampriyadakita ka Vikas

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Purbi Uttar Pradesh Me Rastriya Andolan Ke Dauran Sampriyadakita ka Vikas  by अनिल कुमार सिंह - Anil kumar Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैसी विचारधारा को पनपने का अवसर मिला । हिन्दू एवं मुसलमान दोनों ही सम्प्रदाय के लोग अपने सामुदायिक हितों तक सिमटते गये तथा यह मानने लगे कि धर्म ही भौतिक हितों की एकता का भी आधार है | एक बार जब ऐसी मनोवृत्ति का निर्माण हो गया तो अपने हितों एवं लक्ष्यों की पूर्ति के लिये साम्प्रदायिक विचारधारा का हिंसक प्रयोग भी शुरू हुआ और इसे विकसित एवं प्रभावी बनाने के लिये इतिहास से उद्धरण जुटाये जाने लगे । साम्प्रदायिक नेताओं द्वारा अपने--अपने अतीत के पक्ष में तमाम तर्क एवं मिथक गढ़े जाने लगे जो सही न होते हुये भी बार--बार पुनरावृत्त होने पर जन सामान्य में सही समझे जाने लगे | इस अध्याय में इन्हीं बिन्दुओं के परिप्रेक्ष्य में साम्प्रदायिकता को समझने का प्रयास किया गया है। शोध प्रबन्ध के द्वितीय अध्याय में राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान साम्प्रदायिकता के स्वरूप को विवेचित करने का प्रयास किया गया है। इसमें राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस पार्टी एवं मुस्लिम हिंतों का प्रतिनिधित्व करने वाली मुस्लिम लीग के बीच चल रहे वैचारिक संघर्ष को देखने का प्रयास होगा। यहाँ लीग की इस भूमिका को विवेचित करने का प्रयास होगा कि मुस्लिम हितों की पूर्ति के लिय वह औपनिवेशिक शासन से किस प्रकार समझौते कर रही थी। साथ ही समय-समय पर अपने वर्गीय स्वार्थो की पूर्तिं छेतु कांग्रेस का उपयोग भी कर रही थी। इसी क्रम में यह देखने का प्रयास होगा कि कांग्रेस का समझौतावादी रुख किस हद तक साम्प्रदायिकता को विकसित करने में सहायक रहा और मुस्लिम लीग की माँग क्रमश: तीव्रतर होती हुई देश विभाजन तक पहुँची | शोध-प्रबन्ध के तृतीय अध्याय में तत्कालीन हिन्दी साहित्य के कतिपय चयनित साहित्यकारों के साहित्य में साम्प्रदायिकता का किस प्रकार निरूपण हो रहा था, इसे देखने का प्रयास किया गया है। इसके लिये मैंने शोध विषय के क्षेत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश से सम्बन्धित प्रमुख हिन्दी साहित्यकारों भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, अयोध्या सिंह उपाध्याय हर्ओध, प्रेमचन्द. जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी - निराला एवं श्याम नारायण पाण्डेय की साहित्यिक कूतियो को आधार बनाया है । इस चयन के पीछे मेरा मन्तव्य यह है कि शोध अवधि की पूरी सीमा इन साहित्यकार दारा आच्छादित हो जाती हे । साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं का प्रतिनिधित्व भी इनके साहित्य द्वारा हो जाता है | यह चयन अध्ययन की सुविधा के लिये भी किया गया है। ऐसा करके शेष साहित्यकार की महत्ता कम करने का उद्देश्य नहीं है बल्कि सन्दर्भ स्रोतों के अधिक्य से बचने की कोशिश है। (9)




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