संस्कृत साहित्य में नीतिपरक काव्य एक विवेचनात्मक अध्ययन | Sanskrit Saahitya Me Niitiparak Kavya Ek Vivechnatmak Adhyayn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नीतिमुक्तक, उपदेश मुक्तक स्तोत्र मुक्तक और श्रृंगारी मुक्तक के रूप मे विभक्त होते गये । स्तोत्र मुक्तक का आधार वैदिक सूक्त माने जा सकते है, पुराण भी इस परम्परा में अग्रगण्य উই शतकीय परम्परा के अन्तर्गत बाणभट्ट का चण्डी शतक, मयूर भट्ट का सूर्यशतक आदि प्रसिद्ध है। शंकराचार्य की सौन्दर्य लहरी स्तोत्र मुक्तर्को में श्रेष्ठ है। श्रृंगार मुक्तर्को के अन्तर्गत अमरूक शतक, बिल्हड़ की चौरपंचाशिका तथा नीति परक समुक्तर्को की परम्परा मे कौटिल्य की चाणक्य नीति, भर्तृहरि का नीतिशतक तथा विदुर नीति आदि प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। इनके अतिरिक्त नवरत्नम्‌, अष्टरत्नम्‌, सप्तरनम्‌, षड्रत्नम्‌, पंचरत्नम्‌, दृष्टन्तशतक, अन्यापदेशशतक आदि नीति काव्य मुक्तक अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। शतकीय परम्परा के अन्तर्गत लिखे गये नीति परक मुक्‍तकों का स्थान नीति करर्व्यो में सर्वश्रेष्ठ माना जा सकता दै। नीति कार्व्यो के विकास के इस क्रम मे घटकर्पर का नीतिसारः, भवभूति का गणरत्न, बेतालभट्ट का नीति प्रदीप, क्वि भट्ट का पद्य संग्रह, वररुचि का नीतिरत्नम्‌ आदि मुक्तक नीति काव्य परम्परा के अन्तर्गत लिखे गये अनुपम नीति रत्न हे । जिनका विवेचन हम आगे यथास्थान करने का प्रयास करेंगे। इस प्रकार हम देखते ই कि नीति काव्य सम्बन्धी मुक्तर्को के विकास की परम्परा अति प्राचीन काल से चली आ रही हे। लौकिक काव्य साहित्य के प्रकर्षं काल से लेकर अठारहवीं शताब्दी के पश्चात्‌ काल तक मुक्तक नीति कार्व्यो की रचना होती रही। इसी परम्परा में अन्योक्त्तिपरक मुक्तर्को मे नवीं शताब्दी के आचार्य भल्लट का भल्लटशतक अति प्रसिद्ध ग्रन्थ है। जिसमें नीति परक उपदेश वाध्य न होकर व्यंग्य से परिपूर्ण हैं। वस्तुतः नीति काव्य मानव समाज की आचार भित्ति दै ओर यह उतनी ही पुरानी है जितना कि मानव समाज। यही कारण है कि नीति काव्य के रत्नभूत वाक्य लोगों की जिह्वा पर नर्तन किया करते है। नीतिवचर्नो को सुभाषितरत्नकोश, सुभाषितसुधानिधि, सूक्तिमुक्तावली, सुभाषितावली, सूक्तिवारिधि आदि संग्रह ग्रन्थो मे संग्रहीत किया गया दै, इस क्रम र्मे सुभाषित रत्नभण्डागार सर्वाधिक प्रसिद्ध संग्रह ग्रन्थ है। इस प्रकार हम देखते हैं कि नीति काव्य अपने उद्भव काल जिसे हम वैदिक काल से मान सकते हैं, से लेकर वर्तमान काल तक पल्लवित पुष्पित होकर अनेक अनेक शाखाओं र्मे विभक्त होकर विकास को प्राप्त हुआ है।




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