प्रसाद साहित्य में आदर्शवाद एवं नैतिक दर्शन | Prasad Sahitya Me Adarshbad Avam Naitik Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39 MB
कुल पष्ठ :
498
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी साहित्य और प्रसाद
हिन्दी साहित्य का श्राधुनिक युग सृजन का स्वशिम युग कहा जा सकता है)
यही युग हिन्दी साहित्य के इतिहास का सर्वाधिक विस्तृत काल है। इस युग का
प्रारम्भ सामान्यतः: सन् १८५५० से माना जाता है। इस युग का श्री गणोश भारतेन्दु
हरिश्चन्द्र के जन्म-संवत से हुआ । ईस युग से पुवं साहित्यिक-विधाश्रों में केवल पद्य-
रचना की ही परम्परा थी । यद्यपि संस्कृत-वाङ्मयमे विविध-विधाश्रोंका जन्म वं
सृजन हजारों ब्ष पूर्व ही हो चुका था किन्तु हिन्दी साहित्यकारों ने श्रभिव्यक्ति का
माध्यम पद्य-रचना को ही स्वीकार किया । रीति काल में लक्षणा-ग्रन्थों की रचना भी
पद्य-विधा में ही की गई । रीतिकाल तक यही परम्परा चलती रही किन्तु भ्राघुनिक
युग के प्रारम्भ ने सृजन के क्षेत्र में श्रनेक करवट बदली और विविध-विधाश्रों नै
साहित्यिक क्षेत्र में अनेक समर्थ हस्ताक्षर दिये । इस काल में पद्य के साथ-साथ गन
क्षेत्र का बहुभमुखी विकास हुमा । श्राचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने साहित्य के ग्राधुनिक
इतिहास को दो खण्डों में विभाजित कर तीन उत्थानों में बाँदा है। प्रथम उत्थान
संवत् १६२५-५० तक द्वितीय उत्थान संबत् १६४०-७५ तक और तृतीय उत्थान
१६७५ से श्रव तक । भ्राचायं शक्ल ने ्राधुनिक काल के गद्य खंड को संवत् १९००-
से १६९८० तक मानते हुए श्रतेक वर्गीकरण प्रस्तुत किये हैं । श्राधुतिक गद्य-साहित्य
परम्परा का प्रवर्तत और उमप्तका प्रथम उत्थ।न का समय सवत् १९२५ से १६९५०
तक स्वीकार किया गया है। इस काल में भारतेन्दू हरिश्चन्द्र, (१६०७-१६४१)
प्रतापनारायण मिश्र (१६९१३-१९५१) पं. बालकष्ण भट्ट, बदरीनारायण चौधरी
प्रेमघन”, राधाचरणा गोस्वामी, बावू बालमुकुन्द गुप्त, श्री श्रीनिवासदास, भ्रम्बिकादत्त
व्यास, राधाकृष्णदास, कार्तिकप्रसाद खन्नी, ठाकुर जगमोहनप्तिह, किशोरीलाल
गोस्वामी, तोताराम वर्मा, देवकीनन्दन खत्री, मोहनलाल विश्वनाथ पंड्या, केशव
राम भट्ट, फ्रेंडरिक पिकाट, सुधाकर द्विवेदी आदि अनेक गद्य-लेखकों ने महत्वपूर्ण
थोगदान दिया है | इस काल में अनेक नाम ऐसे भी हैं जिनका इतिहास में कभी
उल्लेख नहीं हो सका किन्तु उन्होंने हिन्दी साहित्य की अ्रमुल्य सेवायें की । राजस्थाब
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