राष्ट्रीय एकता के संदर्भ में संतकाव्य का अध्ययन | Rastriya Eakta Ke Sandarbh Me Sant Kavya Ka Adhyayn

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : राष्ट्रीय एकता के संदर्भ में संतकाव्य का अध्ययन  - Rastriya Eakta Ke Sandarbh Me Sant Kavya Ka Adhyayn

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राम पाल गंगवार - Ram Pal Gangavar

Add Infomation AboutRam Pal Gangavar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भारतीय धर्म-शास्त्रों ने अगर 'सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः' की चर्चा की है तो आचार-व्यवहार और जीवन-शैली में उसे उतारा भी। महान्‌ क्रोतिकारी संत कबीर ने जिस साहसपूर्ण तरीके से हिन्दू-मुसलमान के बीच फैले पाखण्ड और ढोंगण का सामना किया, उन्होने इन दोनों सम्प्रदायो की एकता के माध्यम से सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक एकता का जो शंखनाद किया । उसकी अनुगूंज अभी तक लाखों दिलों में महसूस की जा सकती हे। संत तुलसीदास ने मणि के खडइबो, मसीत में सोइबो, लेवे के एक न देवे का दोऊ' के माध्यम से जाति-पांति पर प्रहार किया ओर 'सीय राममय सब जग जानी- कर प्रणाम जोर जुग जानीः के माध्यम से विघटन के कगार पर खड़े तत्कालीन राष्ट्र को राष्ट्रीय एकता का मूलमंत्र दिया। मुस्लिम शासक अकबर के ष्दीने इलाहीः के माध्यम से भारतीय जनमानस को जो संदेश दिया उसे अगर देखें तो (क) किसी व्यक्ति को जबरदस्ती एक धर्म से दूसरे धर्म में न लाया जाय (ख) प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म, मंदिर और धर्म-स्थल निर्माण की स्वतंत्रता (ण) हर व्यक्ति को धर्म-परिवर्तन की छूट (घ) किसी विधवा को जवर्दस्ती सती न बनाया जाये । वस्तुतः अकबर इस्लाम और हिन्दुत्व दोनों का हिमायती था किन्तु दोनों की कट्टरता से उसे सख्त नफरत थी । उसने कट्टरपंथी बनने की टूट किसी भी धर्म को नहीं दी । यही वजह है कि उस काल मेँ भी देश ने चौतरफा उन्नति की | पंडित नेहरू के शब्दों में अगर मुगल काल के आकलन को देखें तो जब तक मुगल बादशाहों ने कौमी एकता का साथ दिया तब तक उनकी मजबूती बनी रही और जब मुसलमान हाकिम की तरह से राज करना चाहा तो इनकी सल्तनत बिखर गयी ओर अन्ततः भारत पर अंग्रेजों का आधिपत्य हो णया। राजा राममोहन राय, रामकृष्ण परमहंस, महर्षिं दयानंद, स्वामी विवेकानन्द, चैतन्य महाप्रश्रु अथवा आदिगुरु शंकराचार्य की सोच ओर कार्यपद्धति को अगर देखें तो स्पष्ट है कि किसी भी धर्म अथवा धार्मिक परम्परा ने शासक अथवा समाज को हिंसा, शोषण, गुलामी ओर स्वच्छन्दता की इजाजत नीं दी । सब ने देश की एकता, अखण्डता, सहिष्णुता को ध्यान मेँ रखकर तदनुरूप आचरण किया ओर चायो दिशाओं में इस देश




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now