उत्तर भारतीय सौर मंदिर मिथकों और प्रतीकों का अनुशीलन | Uttar Bhartiya Saur Mandir Mithkon Aur Pratikon Ka Anushilan

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Uttar Bhartiya Saur Mandir Mithkon Aur Pratikon Ka Anushilan  by महेंद्र कुमार उपाध्याय - Mahendra Kumar Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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होता जान पड़ता है। प्रकृति मे सूर्य देव एक महान नैतिक एव धार्मिक देवता माने गये है। सूर्य बुरे प्रभाव तथा बीमारियो” को हटाने वाले है। सूर्य की प्रतिभा इतनी बहुमुखी दे कि उसके विभिन्न गुणो से अनेक देवताओ का विकास हुआ।* सूर्य, मित्र, पूषन्‌, सवित, अश्विन, आदित्य, वैवश्वत सूर्य के विभिन्न गुणो का प्रतिनिधित्व करते है। सूर्य का बलदायक रूप सवितृ“ के रूप मे पूजा गया। मित्र सूर्य के सहायक ओर लाभदायक रूप को प्रकट करता है । सूर्य मुख्य रूप से प्रकाश देने वाले पक्ष से सम्बन्धित है ।० पूषन का सम्बन्ध सौभाग्य ओर वृद्धि से हे। अश्विन मे सूर्य का रोग नाशक रूप प्रमुख था? । सूर्य देवता की इस धारणा ने सूर्य को वेद के रचयिताओ द्वारा विभिन्‍न 1 ऋग्वेद 1.115 1 मे सूर्य को चल-अचल सभी चीजो की आत्मा कहा गया है। 2 मैकडानल, वैदिक माइथालाजी पृष्ठ 52 कीथ, ए बी , दी रिलीजन एड फिलासफी आफ वेद एड उपनिषद्स, पृष्ठ 60 3 पाण्डेय, एल पी , सनवर्शिप इन एन्शियेन्ट इण्डिया , पृष्ठ 10 4 मैकडानल, वैदिक माइथालाजी, पृष्ठ 34 , जर्नल आफ रायल एशियाटिक सोसाइटी आफ गरेटदब्विटेन एड आयरलेड , लदन, जिल्द 27, पृष्ठ 951-52 ,यास्क, निरूकत 10 31 कहते है कि सवितृ का अर्थ सर्वस्य प्रसाविता है। 5 मैकडानल, ए ए , वैदिक माइथालाजी पृष्ठ 30 विन्टरनित्स्‌, एन , हिस्ट्री आफ इण्डियन लिट्स्वर , पृष्ठ 76, घाटे, लेक्चर आन दी ऋग्वेद, पृष्ठ 145 6 ऋग्वेद 150 5,413 4, 763 1, 10 31 4 7 मैकडानल, ए ए , वैदिक माइथालाजी पृष्ठ 37 ऋगेद 648 15, 655 2 3 8 मैकडानल, एए , वैदिक माइथालाजी पृष्ठ 52 ऋगखेद 111 6 10, कीथ, ए बी , दी | ॥1 रिलीजन एड फिलासफी आफ वेद्‌ एड उपनिषद्‌स, पष्ठ 60 (7)




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