बोधिपथप्रदीपम | Bodhipathpradipam

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Bodhipathpradipam by रिगजिन लुनडुब लामा - Rigjin Lundub Lama

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२८ २९ ३ @ २१ श्र २२ ( && ) छेकर अपने काय, वाक ओर লন द्वारा किये गये ( पाप ) कर्मों का परिशोधन करना चाहिये। किसी भी प्रकार अकुशछ कर्मों को नहीं करना चाहिये । कायिक, वाचिक आर मानसिक शुद्धि द्वारा बोधिचित्त प्रस्थान तथा आत्म-संयम पर सुदृढ़ हो, त्रिशिक्षाओं का ठीक से यदि पालन किया जाय, तो तीन शिक्षाओं पर श्रद्धा बढ़ती जाती है । हस तरह बोधि सर्त्वा शिक्षा का यत्न पूर्वक निवहि करने से संवोधि-संमार श्र परसिर्ण होता हं । यह सर्च बुद्धों की मान्यता है कि पूर्णं सम्भार आर ज्ञान-सम्भार के शप्र परिपूर्णं करने के ভি अभिज्ञा उत्पन्न करने की आवश्यकता हे । बिना पंख बढ़े पक्षी जेसे आकाश में उड़ नहीं सकता শীত ही अभिज्ञा की क्षमता बिना आणियों का हित नहीं कर सकता । अभिन्ञानी के द्वारा किये २४ আন্ত का पुण्य अभिज्ञा रहित ( व्यक्ति ) द्वारा शत जन्मों मे मी अर्जित नहीं किया जा सकता । | इसलिये जो शीघ्र संबोधि संभार के परिपूर्ण करने की इच्छा करता हो, उसे यत्नपूर्वक अभिज्ञा उत्पन्न करनी चाहिये, तभी सिद्धि मिलेगी । आल्स्य से नहीं ।




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