बोधिपथप्रदीपम | Bodhipathpradipam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
48
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२८
२९
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२१
श्र
२२
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छेकर अपने काय, वाक ओर লন द्वारा किये गये
( पाप ) कर्मों का परिशोधन करना चाहिये। किसी
भी प्रकार अकुशछ कर्मों को नहीं करना चाहिये ।
कायिक, वाचिक आर मानसिक शुद्धि द्वारा बोधिचित्त
प्रस्थान तथा आत्म-संयम पर सुदृढ़ हो, त्रिशिक्षाओं
का ठीक से यदि पालन किया जाय, तो तीन शिक्षाओं
पर श्रद्धा बढ़ती जाती है ।
हस तरह बोधि सर्त्वा शिक्षा का यत्न पूर्वक
निवहि करने से संवोधि-संमार श्र परसिर्ण होता हं ।
यह सर्च बुद्धों की मान्यता है कि पूर्णं सम्भार आर
ज्ञान-सम्भार के शप्र परिपूर्णं करने के ভি अभिज्ञा
उत्पन्न करने की आवश्यकता हे ।
बिना पंख बढ़े पक्षी जेसे आकाश में उड़ नहीं
सकता শীত ही अभिज्ञा की क्षमता बिना आणियों का
हित नहीं कर सकता ।
अभिन्ञानी के द्वारा किये २४ আন্ত का पुण्य अभिज्ञा
रहित ( व्यक्ति ) द्वारा शत जन्मों मे मी अर्जित नहीं
किया जा सकता । |
इसलिये जो शीघ्र संबोधि संभार के परिपूर्ण करने की
इच्छा करता हो, उसे यत्नपूर्वक अभिज्ञा उत्पन्न करनी
चाहिये, तभी सिद्धि मिलेगी । आल्स्य से नहीं ।
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