निबन्धादर्श | Nibandhadarsh

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Nibandhadarsh by धीरेंद्र वर्मा - Dhirendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एशवन्धादश शक्ाओं का किसी सच्चे गुरु के चरणों पर शिर रखकर निए कीजिए । मिल निरीक्षण के बल से अपने पढ़े हुए प्रस्थों में सा वस्तु का भहण कीजिए, और मनोयोग के साथ गम्मीरतापू्व३ अध्ययन कीजिए । केवल किताबों के कीड़े व बनिए । अपने दैनिक जौव्न मे भी इस बाल का ध्यास रखिए कि आप जिस प्रकार के वातावरण मे विचरते हैं वह पवित्र ही । आप कौ संगति, आप की बैठक उठक, और आप के सभा-सम्मेलन सब आप के भाव और भाषा पर अपना अभाव छोड़ते हैं। दोषों से दूर हृटना और गुर का अहं करना, अथवा दूषित भाषा का परित्याग और साधु भाषा से अलुराग, आपके अपने नैतिक बल पर निर्भर है| सामाजिक संस्कार और आचारिक व्यवहार हमारे शिषप्टाचार-सम्बन्धी भावों की ढालनेवाले साँचे होते हैं। इसलिए ये संस्कार भी उपेक्षणीय नहीं। आप की स्वनाओं में इन आवों की रेखाएँ भी प्रतिलक्षित होता हैं । भाषा ओर उसका সি জরি




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