राजकीय व्यय प्रबंध की सिद्धांत | Rajkiya Vyaya Prabandha Ke Siddhant

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Rajkiya Vyaya Prabandha Ke Siddhant by गौरखनाथ सिंह - Gaurakhnath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय ह उपयोगो ঈ कीतर परितरण करते हैं और मोटामोंटी उनके बीच की तुलना:मक आवश्यकता आर समसामान उपयोगिता का विचार करते हैँ। परन्त, उनके बजट- अनुमान का अधिकांश तो स्वायी व्ययों में जाता है जिसमें निशय या इच्छा के लिए कम गुंजाइश रहती है । तुलनात्यक उपबोगिता का ग्रश्न कुछ अंश में नई योजनाओं के ही सम्बन्ध में आ सकता हैँ आर जब किवध विभायो' के वजठ-अनुमान वित्त विसाय में संक्रालेत होते हें तब वहाँ विविध विभागों के आंच के व्यव में उपयोगिता की तुलना हो सकती है और विन्त-विभाग का एक यह मुख्य कास है भी । परन्तु, यहां भी इस तुलनात्मक मापदरड का लगाना कठिन काम है। इस कठिनाई के सस्बन्ध में यहां यहीं उल्लेख कर ইলা ঘ্যান होगा क्रि यहाँ वेधानिक वाघा यह हैं कि ग्रभत व्यय, जो कुल राजकीय व्यय का एक वड़ा अंश हूं, गतरतावयां के अदल-बदल करने का शक्ति के बाहर ই | व्य|वह्रिक रूप मे कुल रकन के वितरण का रास्ता विनायान्तर दवाओों पर निमर करता है. तथा वित्त-विभाय आर सन्त्रिमएडल को भी केवल नह योजनाओं पर खच, (जौ वजट के द्वितीय संस्करण में जाते हैं) में 'हां कुछ अदल-बदल करने की गृष्जाइश रहती हैं। यही अन्य कारणों में एक है कि हम आर्थिक नव-निर्माण की योजनाओं पर अब लग विचार करते हैँ आर इनका अवधि वर्ष के अन्दर सीमित नहीं रखते हैँ | इसके अलावा: नई योजनाओं के निण॒त्र में वित्त-विभाग के स्तर पर भिन्न-भिन्न विसायों की योजनाओं के वीच व्यापक दश्क्ोण से व्यय-वितरयु मेँ सीमान्त उपयोगिता की तुलना की जाती है, यद्यपि यहाँ भी शुद्ध आर्यक मापदरड नहीं लायू किये जा सकते हैं | इस विपय में हम देख चुके हैँ कि सामाजिक दृष्टिकोण का व्यक्तिगत दश्टिक्ोण की तुलना में समय या वधि के स्यान से व्वय-निणुय अर्धिक व्यापक तथा विवेकयुक्त होने की आशा की জানা है । आर जब नह योजनाओं का निरय एक अवधि के लिए, जसे पंच व्यों के लिए, होता है तो हाष्टकोण का व्यापकता तथा विवेकयुक्त निरय की सम्भावना ओर हृढ हो जाती हूं इस ग्रकार राजकीय व्यय को अनुसान-अवधि एक्र वर्ष के अन्दर नहीं सीमित करके, आयोजना विशेष के अनुसार, एक वर्ष से अधिक विस्तत अवधि या उतद्यादन अवधि भर के लिए, वजट अनुमान करने के महत्त की, अब हम समझने लगे हूं । राजकीब व्यय-व्यवस्था में थातीदारी का सिद्धान्त राष्ट्रीय आय का राजकीय व्यवस्था ओर उपाजकों के द्वारा व्यय के बीच वितरण के सम्बन्ध में पहले साग में थार्तीदारी के पिद्धान्त का उल्लेख हो चुका हैं। अब इसका कुछ व्स्तारपृवक वर्णन यहाँ कर देना जट हं | हम देखंगे কি অহ भी हमारे ध्ययन के विषय को, तथा व्यवहार में विर्ताय शासन को, आर कठिन वना देता है । जनराज्य का यह एक मोलिक सिद्धान्त हैँ कि हर व्यक्ति को नायरिक्रता का समान अधिकार हे। इस कारण वड़ा उपाजंक या छोटा या एकदम निर्धन हो, सबको




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