भोजपुरी लोकगाथा | Bhojpuri Lokgatha

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Book Image : भोजपुरी लोकगाथा - Bhojpuri Lokgatha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ক্ষ ) अंगों में देख सकते है। प्रसिद्ध महाकाज्यों तथा वाठकों में लोकसाहित्य की सामग्री का विभिन्न रूपों में समावेश हुप्ना हें। कथासरित्सागर, वैताल पचीसी इत्यादि में वणित कथाएं अधिकांश में लोककथाश्रों के शुद्ध रूप हैं। प्रसिद्ध महा- काव्यों-->रामायण और महाभारत इत्यादि लोकगाथाशओं से ही उद्भूत हैं। नाटकों के हल्लीश, रासक, प्रंखण, भाण, माणिका श्रीगदित इत्यादि प्रकार लोकनादय की परम्परा से ही लिए गए हैं। काव्यगत शैलियों में लोकसाहित्य ने अमृल्य योग दिया है। हिन्दी के प्रसिद्ध चारण, संत एवं भक्त कवियों ने लोक- साहित्य में प्रचलित ्रनेक शंलियों को श्रपने शिष्ट एवं विचार-प्रवण साहित्य मे स्थान दिया ह । इन कवियों से रासो, चांचर, डोला, कह्रवा, भूमर, बरव, सोहर, मंगल, बेली, तथा बिरुहली इत्यादि लोकगीतों की शैलियों को ग्रहण किया हैं । भ्रतः इससे यह स्पष्ट होता है कि लोकसाहित्य का क्षेत्र किसी भी प्रकार सीमित नहीं है, यहाँ तक कि आज के गीत (लिरिक) युग में भी लोकगीतों की शैलियाँ परिलक्षित होती हैं । वास्तव में यह विषय (लोकसाहित्य ओर शिष्ट साहित्य का अन्योन्य सम्बन्ध) अत्यन्त रोचक हैँ। प्रस्तुत प्रबन्ध की सीमा को देखते हुए इस पर सविस्तार विचार करना शक्य नहीं । वस्तुत: यह एक पृथक प्रबन्ध का विषय है।




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