वैदिक कर्मकाण्डों का मनोविश्लेषणात्मक अध्ययन | Vaidik Karmkandon Ka Manovishleshanatmak Adhyyan

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Vaidik Karmkandon Ka Manovishleshanatmak Adhyyan by शशि भूषन द्विवेदी - Shashi Bhooshan Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(5) ताण्ड्य ब्राह्माण-सामवेदीय ताण्ड्यब्राह्मण सामवेद के याज्ञिक प्रयोग से सम्बद्ध है। इस ब्राह्मण में साम एवं सोमयाग का मुख्यत. वर्णन किया गया है। इसी प्रकार समावेदस्थ अन्य ब्राह्मणो मे भी सामवेद कं मंत्रों का यज्ञानुष्ठान से सम्बद्ध प्रयोग एवं विधियो का वर्णन किया गया हे। (6) गोपथ ब्राह्मण-अथर्ववेद से सम्बद्ध एकमात्र ब्राह्मण ग्रन्थ गोपथ ब्राह्मण है। इसके दो भाग है-(1) पूर्वगोपथ-इसमे पांच प्रपाठक या अध्याय दहै। (2) उत्तरगोपथ-इसमे छह प्रपाठक या अध्याय है। दोनों प्रपाठकों का योग करने पर कूल 285 कण्डिकायं प्राप्त होती हैं । गोपथ ब्राह्मण मे अथर्ववेदीय ऋचाओं का यागदिक प्रयोग एवं यज्ञानुष्ठान विधि का वर्णन किया गया है। इसप्रकार ब्राह्मण वेद एवं संहिताओं के महत्त्वपूर्ण एवं अविभाज्य अंग है, क्योकि ब्राह्मण ग्रन्थों के अभाव में मंत्रो का याज्ञादिक प्रयोग एवं अनुष्ठान-विधि सम्पन्न नही हो सकती ই, एेसी स्थिति में ब्राह्मण ग्रन्थों की उपादेयता स्वयं-सिद्ध है। वस्तुतः ब्राह्मणग्रन्थ वेद का व्याख्यान भाग कहा जा सकता हे | 3- आरण्यक आरण्यक के विषय में सायणाचार्य का कथन दहै कि “अरण्य में पाठ्य या अध्ययन होने के कारण इसका आरण्यकः नाम सर्वथा युक्तिसंगत प्रतीत होता हे ॥“! सायणाचार्य का कथन है- अरण्याध्ययनादे तद्‌ आरण्यकमितीर्यते | अरण्ये तदधीयीतेत्येवं वाक्यं प्रवक्ष्यते | ।' आरण्यक के अन्तर्गत यज्ञानुष्ठान के विधि एवं व्याख्यान का उपदेश नहीं होता है, प्रत्युत्‌ यज्ञानुष्ठान में विद्यमान आध्यात्मिकं तत्त्वों की मीमांसा होती है। आरण्यको मे प्राणविद्या का विशिष्ट निदर्शन होता है। आरण्यक में यज्ञानुष्ठान 1 तैत्तिरीयारण्यक भाष्य-श्लो क-6




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