श्री रामकृष्ण एवं विवेकानन्द की वैचारिक पृष्ठभूमि में उद्वैत वेदान्त की सार्थकता | Shree Ramkrishna Evam Vivekanand Ki Vaicharik Prishthibhoomi Mein Udwait Vedant Ki Sarthkta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
283
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री रामकृष्ण देव जी के बचपन का नाम गदाधर था तथा उनके पिता
'खुदीराम चट्धोपाध्याय' एक धर्मपरायण, निष्ठावान एव सदाचार सम्पन्न ब्राह्मण
थे। वे रघुवीर के उपासक थे। उनकी माता चन्द्रमणी देवी स्नेह, सरलता तथा
दयालुता की प्रतिमूर्ति थी। गदाधर के परिवार के अन्य सदस्यो मे श्री रामकुमार
জী श्री रामेश्वर उनके दो भाई तथा दो बहने-कात्यायिनी एव सर्वमद्धला थी।'
इस छोटे से बालक को केन्द्रित कर उनके परिवार वालो को अनेक
लौकिक लीलाये दिखाई देने लगी। पाँचवे वर्ष मे श्रीरामकृष्ण को विद्यारम्भ
सस्कार के बाद गाँव की पाठशाला मे पढने भेज दिया गया। वे श्रुतिधर” एव
'स्मृतिधर' थे। एक बार भी वह जो कुछ भी देख या सुन लेते थे उसे किसी
प्रकार भूलते नहीं थे। यह कहना कठिन है कि श्रीरामकृष्ण के जीवन मे दिव्य
भाव का विकास सर्वप्रथम कब हुआ था। पर उनका दैवीय स्वरूप शैशवकाल मे
ही प्रकट होने लगा था। सात वर्ष की आयु मे अकस्मात् पिता का निधन हो
गया। श्री रामकृष्ण देव का पाठशाला जाना बन्द हो गया ओर उनके विवेकशील
मानस मे ससार का सच्चा स्वरूप एकदम भासित हो उठा। पित्र-वियोग की इस
एक ही घटना ने इस बालक के हृदय मे ससार के प्रति तीव्र वितृष्णा उत्पन्न कर
दिया।
कलकत्ता के कालीमन्दिर मे प्रधान-पुजारी के रूप मे पण्डित रामकुमार
नियुक्त हूये। श्री रामकृष्ण देव भी ज्ञामापुकूर से वहो कभी-कभी आया करते थे।
देव इच्छा से शीघ्रही वे भी पूजा कार्य मे नियुक्त हुये। उस समय वे इक्कीस
या वाईस वर्ष के थे। कुछ दिनो तक काली मदिर मे पूजा करने के बाद
श्रीरामकृष्ण के मन मे प्रश्न उठा “मै जो पूजा कर रहा हू, वह किसकी कर रहा
` शास्लयज्ञ खुदीराम चट्धोपाध्याय ने जब अपने आत्मज का जन्मलग्न देखा तो यह अत्यन्त शुभ मुहूर्त
था। तो वे समङ्ञ गये कि स्वय गदाधर विष्णु ही अपने वचन को पुरा करने भये हैँ। इसलिए उन्होने
नवजात शिशु का नाम गदाधरः रखा होगा।
* श्री रामकृष्ण लीला प्रसग प्रथम खण्ड स्वामी शारदानन्द पृ 25
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