हिंदी की पत्र पत्रिकाएँ | Hindi Ki Patra Patrikayein

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( छ ) শন: बन्द हो जाते हैं । यद्यपि जन घर्मावलग्बियों के कुड पत्र, राजपूत, कान्य कुब्ज', 'श्रौचेक्टेश्वर समाचार' आ्रादि जो ४० वर्ष पू से भी प्रकाशित हो रहे हैं, अपवादस्वरूप हैं। पर इनका स्थायी मड़त्व नहीं है । इस प्रकार की पुस्तक प्रकाशित कर हमारा मन्‍्तव्य हिन्दी भाषा क पत्रों की वर्तमान गतिविधि से सवसाधारण को परिचित कराने का है। ऐसी पुस्तक के तेयार करने में पत्न-सापदकों का सहयोग भी पूणं खूप से अपेक्षित रहता है ! आजकल झनेक पत्र ऐसे निक्रल्न रहे हैं जिनका सम्पादक, प्रकाशक व संचालक बहुधा एक ही व्यक्ति रहता हैं ओर ऐसे व्यक्तियों में अधिकांशत: नामधारी कविः না ल्लेखक होते हैं। बढ्वुत से पत्र तो ऐसे हैं जो अत्यन्त सामान्य कोटि के हैं, जो किसी भी हाक्तत में अ्रपनी सत्ता की साथक्रता सिद्ध नहीं कर सकते। थ्रायमित्र' (१८९७५ से प्रकाशित) आदि पत्रों को देख, यह तो स्पष्ट ही हे कि व्यक्ति,त रूप से निकाले गये पत्र अधिक दिन नहीं जीते | ऐसे पत्रों के जीवन मे भी अनेक उतार-चढ़ाव आग्रे हैं। सुब्द् भित्ति पर स्थापित नागरी प्रचरी पत्रिकाः, 'सरस्परतीः, 'कल्पाण', विशाल भारतः, माधुरी? आदि जेसे पत्र कम ही हैं | लेकिन उनका अपना निजी महत्व हे । हिन्दी साहित्य को सम्पन्न बनाने में उनका काफी हाथ रहा है ओर रदेगा। यद्यपि यह भी सच है कि “महारथी”, सुधथा!, “गंगा?, “कमला”, 'रूप!भ आदि अनेक पअ्च्छे पत्र अवतीण होकर श्रस्त हो गये । राष्ट्र के निर्माण में हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं ने बहुत योग दिया है | “हिन्दी प्रदीप, व्यागभूमि', भविष्य” और 'अ्रभ्युदय! লী पत्रों ने प्रारस्म से ही राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करने का सफल प्रयत्न किया किन्तु तत्काल्लीन सरकार ने उनका दमन किया | कर्मवीरः, श््राज, 'स्वतंत्र!, 'सेनिक' शोर “्रताप” ने दमन के बावजूद भी राष्ट्रीय श्राग्योलन को आगे बढ़ाया | योगी”, 'हुंका?”, 'रवराज्य” आदि ने आगे बढ़कर हमारा पथ-प्रदशन किया | ग्राज अग्नि परीका) का एक वपं गुजर शुका है| पंजाव-विभाजन, हैदराबाद और काशमौर-काण्ड के कारण देश का यातावरण चुव्थ रहा। पर आज धर्म, राजनीति, समाजशास्त्र, व्यापार आदि विषयों को लेकर अनेक पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है। कृषिशासत्र से संबंधित




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