महाभारत के पात्र (पहला भाग) | Mahabharat Ke Patra (Pehla Bhaag)
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० महाभारत के पात्र
“पर तू देख तो सही ! यद्द खिलोना तो बहुत हो सुन्दर है ।””
“इससे भी सुन्दर-सुन्दर खिलोने तुम लाये हो, लेकिन ये तो मेरे
दिल को जलाते ही हें । तुम पुरुष लोग यह नहीं सममः सकते कि हृद्य
का स्नेह पान कराने के लिए कोई बालक न हो तो स्त्री का दिल केसा
सूख जाता दै । इसका श्रनुभव तो श्रगले जन्म में जब कभी स्त्री बनोगे
तब तुमको द्वोगा ।??
“पर जीजी देख तो!”-राधा की बहन बोली--“यह तो सचमुच
बड़ा ही सुन्दर है । तुम्हें बहुत श्रच्छा लगेगा ।?!
“ছে লিলি मिद्दी के पुतलों को जीवित मानकर अपना ভি बह-
लाने जसी बालक अब में नहीं रही । स्वामी, मुझसे मज़ाक मत किया
करो और मैं कद्दे देती हूँ कि अब आगे से ऐसे निर्जीव पुतले मेरे लिए
मत काया करो ।”” राधा उदास होकर बोली । उसका गला भर आया।
“पर बहन, यह पुतला तो निर्जीव नहीं है।?!
(क्या कद्दा ? निर्जीव नहीं तो कया सजीव है ? सच कहती हो--?'
कट्दकर रसोईंघर से राधा दोड़ती हुई बाहर निकली ओर अधिरथ के
हाथ में बालक को देखकर वह एकदम चकित होगदं ।
“स्वामी, मै यह क्यादेख रही हुं १
“तुम्हीं बताओ कितुमक्यादेखरहीदहो।'
“तुम्हें यह कहाँ से मिला ???
“तुम्हीं बताश्री ??”
“तुम्दारे द्वाथ में तो बालक है ! भगवान् ने सचमुच मेरे लिए यह
खिलौना भेजा है ? स्वामी, यह स्वप्न तो नहीं ই? मेरी आँखे मुम्े
धोखा तो नहीं दे रही हैं ! देखो मुझसे मज़ाक मत करना, समझे।”?
“नहीं, नहीं । मेरे हाथ में यह बालक है और इसे मै तुम्हारे ही
लिए लाया हूँ । यह लो ।”!
राधा पागल जेसी द्वो गई । उसने जल्दी से बालक को अपने द्वाथ
में ले लिया और उसे अपनी छाती से लगा लिया। उसका सिर सूघा,
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