महाभारत के पात्र (पहला भाग) | Mahabharat Ke Patra (Pehla Bhaag)

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Mahabharat Ke Patra (Pehla Bhaag) by आचार्य नानाभाई भट्ट - Acharya Nanabhai Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० महाभारत के पात्र “पर तू देख तो सही ! यद्द खिलोना तो बहुत हो सुन्दर है ।”” “इससे भी सुन्दर-सुन्दर खिलोने तुम लाये हो, लेकिन ये तो मेरे दिल को जलाते ही हें । तुम पुरुष लोग यह नहीं सममः सकते कि हृद्य का स्नेह पान कराने के लिए कोई बालक न हो तो स्त्री का दिल केसा सूख जाता दै । इसका श्रनुभव तो श्रगले जन्म में जब कभी स्त्री बनोगे तब तुमको द्वोगा ।?? “पर जीजी देख तो!”-राधा की बहन बोली--“यह तो सचमुच बड़ा ही सुन्दर है । तुम्हें बहुत श्रच्छा लगेगा ।?! “ছে লিলি मिद्दी के पुतलों को जीवित मानकर अपना ভি बह- लाने जसी बालक अब में नहीं रही । स्वामी, मुझसे मज़ाक मत किया करो और मैं कद्दे देती हूँ कि अब आगे से ऐसे निर्जीव पुतले मेरे लिए मत काया करो ।”” राधा उदास होकर बोली । उसका गला भर आया। “पर बहन, यह पुतला तो निर्जीव नहीं है।?! (क्या कद्दा ? निर्जीव नहीं तो कया सजीव है ? सच कहती हो--?' कट्दकर रसोईंघर से राधा दोड़ती हुई बाहर निकली ओर अधिरथ के हाथ में बालक को देखकर वह एकदम चकित होगदं । “स्वामी, मै यह क्यादेख रही हुं १ “तुम्हीं बताओ कितुमक्यादेखरहीदहो।' “तुम्हें यह कहाँ से मिला ??? “तुम्हीं बताश्री ??” “तुम्दारे द्वाथ में तो बालक है ! भगवान्‌ ने सचमुच मेरे लिए यह खिलौना भेजा है ? स्वामी, यह स्वप्न तो नहीं ই? मेरी आँखे मुम्े धोखा तो नहीं दे रही हैं ! देखो मुझसे मज़ाक मत करना, समझे।”? “नहीं, नहीं । मेरे हाथ में यह बालक है और इसे मै तुम्हारे ही लिए लाया हूँ । यह लो ।”! राधा पागल जेसी द्वो गई । उसने जल्दी से बालक को अपने द्वाथ में ले लिया और उसे अपनी छाती से लगा लिया। उसका सिर सूघा,




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