एक महान् नैतिक चुनौती | Ek Mahaan Chunautii
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
438
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डन्ककं के बाद ই
दूर तक शभ्रसर रखनेवाला श्रन्तर्राष्ट्रीय उद्देश्य, श्रर्थात् शान्ति, दृष्टि से श्रोभल
हो जाता हूं । इसके भ्रलावा, जब कभी किसी संकट के बादल फट जाते हैं तो
कूटनीतिज्ञ श्रोर बहुत-से साधारण लोग भी हर्ष मनाने लगते हें । समस्या
हल हुई या नहीं, इसकी उन्हें इतनी चिन्ता नही होती जितनी इस बात की,
कि चलो इस समय तो तनातनी कम हुई। एक दिन एकाएक ये ही उलझी
हुई समस्याएं भ्राकर खड़ी हो जाती हैं ।
पहले और दूसरे महासमर के बीच जो समय बीता उसमें धुरी राष्ट्र-समह
से बाहर के किसी भी देश ने लगकर या विशेष रूप से युद्ध रोकने की चेष्टा
नहीं की । उलटे राजनीतिज्ञों ने कहा--'हिटलर युद्ध के लिए उतांरू है, इस
समय हमे उसकी बात॑ मान लेनी चाहिए; बाद में जब वह जड जमाकर बैठ
जायगा तो रूस-विरोधी शक्ति के रूप मे उसकी मित्रता हमारे लिए बहुमूल्य
सिद्ध होगी ।” उन्होंने यह भी कहा--“इटली का हब्श पर हमला करना एक
जुमं हं, फिर भी यदि हम मुसोलिनी को भ्रधिक न भी्चेँतो सम्भव ह कि वहु
हिटलर के विरुद्ध हमारा साथ दे ।” इसके अलावा भी उन्होंने कहा--“'यदि
स्पेन वामपक्षी रहा तो उससे सब जगह वामपक्ष को ही प्रोत्साहन मिलेगा ।
फ्रैक्की ममोलिनी या हिटलर का पिट्ठ है तो होने दो, हम उसे रुपये उधार
देकर, उसके साथ दया दिखाकर और उसके मामलों में हस्तक्षेप न करने की
नीति बरतकर उसे ख़रीद सकते हैं ।/ इस तरह की बातों से तात्कालिक
लाभ तो अवश्य हुञ्ना किन्तु ये सिद्धान्त की बातें नहीं थीं ।
इस प्रकार लललो-चप्पो करने से हिटलर, हिरोहितो और मुसोलिनी
का बिना रक्त बहाये ही विजयी बनने में 'सहायता मिली, जिसके फलस्वरूप
युद्ध अधिक दिनों तक चला श्रौर उसमें खून की नदियाँ भी खूब बहीं। राज-
नीति केवल युद्ध की सृष्टि ही नहीं कर सकती बल्कि उसे दीघंकालीन भी
बना सकती हे । साथ ही साथ वह विजय को निरथेक भी कर सकती है।
युद्ध से पहटे जो राजनीतिक हिचकिचाहट थी वह उसके आरम्भ होजाने
पर भी चलती रही । तुष्टीकरण की नीतिं संक्रामक सिद्ध हुई। जहाँ एक सर-
कार ने उसे छोड़ा वहीं दूसरी ने श्रपना लिया । फ्रांस और ब्रिटेन को छोड़-
कर धरी-राष्ट्र-समह के बाहर ऐसा कोई दूसरा देश नहीं था जिसने श्रपने पर
प्राक्रमण होने से पहले युद्ध की घोषणा की हो । फ्रांस ने ३ सितम्बर, १६३६
फो ५ बजे सन्ध्या समय युद्ध घोषित किया; वह भी इसलिए किं उसी হিল
सवेरे ११ बजे इंग्ल॑ण्ड ऐसा कर चुका था । सदा की तरह फ्रांस का श्रकेले
रहने से डर लगता था। ग्रेट ब्रिटेन ही एक ऐसा देश था जहाँ जनता में इस
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