ह्रदय मंथन के पाँच दिन | Hriday Manthan Ke Panch Din
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
81
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ & :
लोगों की आत्मा को जाग्मत करने के लिए है, उसे मार डालने
को नहीं । जरा सोचिए तो सही, आज हमारे प्यारे हिन्दुस्तान
मे कितनी गन्दगी पेदा हो गई है। तब आप खुश होंगे कि
हिन्दुस्तान का एक नम्र पूत, जिसमें इतनी ताकत है, ओर शायद
इतनी पवितन्नता भी है, इस गन्दगी को मिटाने के लिए ऐसा कदम
उठा रहा है, और अगर उसमें ताकत और पविन्नता नहीं है
तब वह प्रभ्वी पर बोमः रूप है| जितनी जल्दी वह उठ जाय और
हिन्दुस्तान को इस बॉम से मुक्त करे, उतना ही उसके लिए और
सबके लिए अच्छा है। मेरे उपवास की खबर सुनकर लोग
दौड़ते हुए मेरे पास न आवें। सब अपने आस-पास का वाता-
वरण सुधारने का प्रयत्न करें तो बस हे।
नई दिल्ली, ( मोॉनवार ) १२ जनवरी १६४८
¦ २,
पहला दिन
भाइयो और बहनो
मेरी उम्मोद है कि में पंद्रह मिनट में जो कहना है, कह
कू गा। बहुत कहना है, इसलिए शायद कुछ ज्यादा समय भी
लगे ।
आज तो में यहाँ (प्राथेना-सभा में) आ सका, क्योंकि जब
कोई फाका करता है तब पहले दिन--चौबीस घंटे तक--तो
किसी को कुछ लगना न चाहिए । मैंने तो आज साढ़े नौ बजे
खाना शुरू किया। उसी समय लोग आते रहे, बात करते रहे
तो खाना ग्यारह बजे पूरा कर सका | सो आज केदिन की तो
कीमत नहीं | इसलिए आज प्राथना-सभा में आ सका हूं तो
किसी को आश्चय नहीं होना चाहिए। आज तो आ-जा सकता
हूं, बेठ सकता हूँ ओर सब काम भी किया है। कल से डर है ।
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