हमारा योग और उसके उद्देश्य | Hamara Yog Aur Uske Uddeshya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अधिक उन्नत सिद्धिके लिये आवश्यक अवस्थाओंका
उष्तरोक्तर निर्माण होता रहता है। इस कलिकालमें जो
बीत चुका है, पर जिसका असर अभीतक चल रहा
दे- कितु वट भी अव समापिपर हे--प्राचीन शान
ओर संस्कृतिकी सा्वत्रिक हानि हुई हैे। उस ज्ञान
ओर संस्कृतिके कुछ टट-फूटे अश ही वेदोंमें, उपनिपदों
ओर अन्यान्य धर्मग्रन्थोंमें तथा जगतकी उलझी हुई
परंपराओंके रूपमें, हमार पास शेष रह गये है।
परंतु अब वह समय आ गया है जब कि ऊपरकी
तरफ गति करनेके लिये पहला पग उठाया जाय,
अर्थात् एक नवीन सामंजस्थ आर नवीन सिद्धिकी
प्राप्तिके लिये प्रथम प्रयास क्रिया जाय । यही कारण
है कि मलुष्य-समाज, ज्ञान, धर्म आर सदाचारकी
पूणताके छिये आजकल इतने तरहके विचार फल रहे
है। परंतु सच्चे सामंजस्थका पता अभीतक
अप्राप्त है ।
केवल भारतवप ही इस सामंजस्यका आविप्कार
कर सकता है, कारण यह सामंजस्य मनुप्यकी वत्तमान
प्रकृतिका रूपांतर करके ही-उसके पुनव्यवस्थापन-
द्वारा नटी--विकसित स्न्िजा सकता हे, आर इस
रूपांतरका होना योगके बिना संभव नहीं है । मनुष्य
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