साहित्य - शिक्षा | Sahitya - Shiksha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी - Padumlal Punnalal Bakshi
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हेमचन्द्र मोदी - Hemchandra Modi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसी ढंगसे क्षुद्रने अपना जीवन सम्भव बनाया।
किन्तु, जीवनकी इस सम्भावनामें ही विराट् और क्षुद्र, अनन्त
और समीपका अभेद सम्पन्न होता दीखा | वह अभेद यह हैः---जो
कुछ है वह क्षुद्र नहीं है पर विराटका ही अंश है, उसका बालक
है, अतः स्वयं विराट है ।
धूप चमकी, तो बृत्तने मनुष्यसे कहा, “मेरी छायामें आ जागरो)!
बादलोंसे पानी बरसा तो पर्वबतने कंदरामें सूखा स्थल प्रस्तुत किया
ओर मानों कहा, “डरों मत, यह मेरी गोद तो है ।' प्यास लगी तो
मरनेके जलने अपनेको पेश किया । मनुष्यका चित्त खिन्न हुआ और
सामने अपनी टहनीपरसे खिले गुलाबने कहा, “ भाई, मुझे देखो,
दुनिया खिलनेके लिए है । › सिक बेलामें मनुष्यकों कुछ भीनी-सी
याद आईं, और आमके पेडपरसे कोयल बोल उठी, “ कू-ऊ, कू-ऊ।!
मिद्रने कहा “ मुझे खोदकर, ठोक-पीटकर, घर बनाओ, में तुम्हारी
र्ता कर्गी । › धूपने कहा, ‹ सर्दी लगेगी तो सेवाके लिए में हूँ।'
पानी खिलखिलाता बोला, “ घबड़ाओ मत, मुझमें नहाओगे तो हरे
हो जाओगे ।
मनुष्य-प्राणीने देखाः---दुनिया है, पर वह सब उसके साथ है ।
फिर भी, धूपको वह समझ न सका । वषोके जलको, मिद्गीको,
फलको,--किसीको भी वह पूरी तरह समझ न सका | कया वे सब
आत्म-समर्पणके लिए तैयार नहीं हैं ? पर उस क्षुद्रने अहंकारके
साथ कहा, “ ठहरो, में तुम सबको देख ढँगा। में “में ' हैँ, और
में जीऊँगा। ?
इस प्रकार श्रहंकारकी टेक बनाकर, अपनेको क्षुद्र ओर सबसे
अलग करके वह जीने लगा । अथात् , सब्र प्रकारकी समस्याएँ खड़ी
रे
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