महात्मा गाँधी की वसीयत | Mahatma Gandhi Ki Vasiyat

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Mahatma Gandhi Ki Vasiyat by मंजर अली सोख्ता - Manjar Ali Sokhta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बापू के बुनियादी सिद्धान्त ই गहरी रंगी हुई थी. दुनिया भर के अन्दर एक तरफ़ दीन और दूसरी तरफ़ दुनिया का मोह जाज्ञ या एक तरफ़ नेकी और बदी का खयाल ओर दुसरी तरफ़ दुनिया परस्ती, इनके बीच खीचातानी जारी थी. जमाने ने जबरदस्ती महारमा गांधी को इस महासंम्राम के मैदान मे धर्म ओर नेकी की तरफ़ एक महारथी के रूप में लाकर खड़ा कर दिया. देवताओं और असुरों या धर्म और अधर्मं के बीच का यह संग्राम श्रभी तक जारी है. गांधी जी अपने साथ दो बुनियादी खयाल दुनिया में लाये उस समय की दुनिया के लिये यह दोनों बिल्कुल अनोखे थे. एक यह कि श्रात्मबल , यानी रूहानी ताक़त एक बहुत শর্ত ताक़त है ओर दुनिया की ओर सब ताक़तें मिलकर भो उसक मुक़ाबला नहीं कर सकतीं. दूसरा यह्‌ कि यह आत्मबल आम लोग में भी पेदा किया जा सकता है और इसकी मदद से दुनिया क बड़ी से बड़ी ताक़तों, उनके ज़ल्मों ओर हकूमतों का अइ्िंसा के असूल पर चल कर मुक्राबल्ा किया जा सकता है. यह ताक्रतें चि देश के अन्दर की दहो बाहे बाहर की, चाहे राजकाजी हं चाहे साम्प्रदायिक, धम का असली रूप क्‍ गांधी जी के सामने एक बड़ी कठिनाई यह भी थी कि घर का जो रूप उनके सामने था और जो दुनिया कौ सव धमं पुस्तकं में असली धर्म बताया गया है बह बहुत कुछ बिगड़ चुका था दीन धर्म अपनी पुरानी जगह खो चुका था. घमं पुस्तकों का वह मान न रह गया था. खोखले रीत रिवाजों ओर प्रपंचों को ही लोग




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