भारतेन्दु हरिश्चंद्र | Bharatendu Harishchandra

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Bharatendu Harishchandra  by लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय - Lakshmikant Varshney

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ भारतेन्द्‌ दरिथन्ध्र गतिशीलता का परिचय दिया। ईसा की उन्नीसवीं शताब्दी के लगभग मध्य तक हिन्दी प्रदेश में परंपरागत भारतीय सम्यता ओर य्रोपीय सभ्यता में पारस्परिक संघर्ष चलता रहा । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भारतोय सभ्यता ओर संस्कृति के प्राचीन केन्द्र काशी म॑ रहते हुए दोनों का समन्वय उपस्थित किया, भटके हुओं को उन्होंने किनारे पर त्ञगाया । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जन्म से लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व का भारतीय इतिहाठ एक जाति के त्रिगड़ने की दुःखद कहानी है | अंतिम मद्ान्‌ भुगल सम्राट औरंगजेब को मृत्यु १७०७ में हुई थी। वैसे तो मुगल साम्राज्य के पतन का बीजारोपण उसी के शासन-काल में हो चुका था, किन्तु उसके दुबल उत्तराधिकारियों के समय में मुगल साम्राज्य का रहा-सहा वेभव, भी विल्लीन हो गया । साम्राज्य में अनेक शासन- संबंधी एवं चारित्रिक दोष उत्पन्न हो गए थे। उधर मरहठे, सिक्‍्ख, जाट श्रादि भी श्रपना राजनीतिक प्रभुत्व बढ़ाने में लगे हुए थे। परिणाम यह हुआ कि एक दूसरे से श्र सब आपस में लड़भिड् कर अपनी शक्ति का हास कर रह थे | इसी समय पश्चिम की अन्य अनेक जातियों की भाँति व्यापार करने के लिए आए अँगरेजों ने श्रपने यूरोपीय पतिद्वन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर देश की अराजकतापूर्ण परिस्थिति से लाभ उठा कर अपनी सत्ता स्थापित करने की ओर ध्यान दिया । इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारतेन्दु इरिश्चन्द्र के जन्म से लगभग सो वष पूवं, श्रथांत्‌ १७५७ के ज्लासो-युद्ध में अगरेज़ों को उत्तर भारत में सर्वप्रथम मदत््वपूर्ण विजय प्राप्त हुई। इस युद्ध ने समस्त उत्तर भारत का द्वार उनके लिए खोल दिया । ऊपर की ओर बढ़ने में न तो कोई भीगोलिक स्थिति उनके लिए बाचक थी और न कोई राज्य-शक्ति | तत्पश्चात्‌ १७६४ के बक्सर-युद्ध ने उन्हें ठीक हिन्दी प्रदेश की सीमा परला तरिठाया | १८०३ तकवे हिन्दी प्रदेश के मध्य ओर केन्द्रीय भाग पर अपना प्रमुत्व स्थापित कर चुके थे । १८१८ तक राजस्थान के सभी राजपूत नरेशों ने उनकी अ्धीनता स्वीकार कर ली ।




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