मानव हृदयकी कथायें | Manav Hriday Ki Kathayein

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Manav Hriday Ki Kathayein by बाबू मदनगोपाल - Babu Madangopal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ अवसर था; परन्तु पूर्वोक्त प्रतिभिशाली लेखक मोपासाँको केवल सादित्य- प्रेमी, बलिए और व्यायामप्रिय युवक ही समझा करते थे । पहले पहल तो फ़ाबेरको भी इनकी प्रतिभाका पता न चला था; परन्तु फिर भी वह इनको लिख- नेका प्रयत्न करनेके लिए सदा उत्साह दिलाते रहते थे ओर तब कुछ काल पश्चात्‌ उन्हें इनकी ग्रतिभाका प्रत्यक्ष अनुभव हुआ था। फ्रांस-जर्मन युद्धमें भाग टेनेके पद्चात्‌ उसका अन्त होनेपर इन्होंने बड़े उत्साहसे उक्त आचाय्येका विधिवत्‌ शिष्यत्व भी स्वीकार कर छिया था। मोपार्सोकी प्रतिभा शनैः शनेः परिपक्त हुई । सन्‌ १८१५ मेँ तो वह नोसिखुये ही थे ओर कुछ कवितायें तथा आख्यायिकायें लिखा करते थे। कवि- तायें तो मध्यम श्रेणीसे कुछ अच्छी होती थीं; परन्तु आख्यायिकायें ऐसी भी न होती थीं । इसी कालमें इन्होंने एक नाटक भी लिखा था--जिसकी अनुचित दोनेके कारण ही बहुत प्रसिद्धि हुई । सन्‌ १८५३ म इस नाटकका “ ऑन- य्‌-टा › नगरमें दो वार अभिनय हुआ, जिसमें छावर तथा रोजंनीफ आदि साहित्यिक दशक-समूहमें थे ओर स्वथं ग्रन्थकारने रंगमंचपर छ्लीका अभिनय किया था । सन्‌ १८८० में इनको प्रतिभा सहसा ऐसी अद्भुत रीतिसे परिपक्क हुईं कि साहित्यके इतिहासमें उसका जेसा उदाहरण ही नहीं मिलता । जिस समय इनको अवस्था पूरे ३० वर्षकी थी, उस समय इनकी कहानी-लेखन- प्रणाली ओर कवित्त्वर्शाक्त दोनों ही पूर्णावस्थाको ग्राप्त हो गई थीं । कविताका तो यह अन्तिम काल ही समझिए । इनकी गणना मध्यमश्रेणीके कवियोंमें होती है; परन्तु कहानियाँ लिखनेमें यह ऐसे सिद्धहस्त निकले कि आचाये पदको प्राप्त करके ही इन्होंने विश्राम लिया ओर अबतक भी इनको इस आसनसे कोई च्युत नहीं कर सका है । सन्‌ १८८० में इनके डे-वेयर नामक कविता- संग्रहकी निन्दाके कारण ही बहुत प्रसिद्धि हुईं। फ्रेंच सरकार तो इसको जब्त कर लेना चाहती थी; परन्तु सैनेटर ( कोंसिलसदस्य ) कॉर-डि-एकी कृपासे जब्ती होते होते रह गई । इस कास्येमें भी यह सिंह-शावक बृद्ध साहित्य-केस- रीका ही अनुकरण कर रहा था । इस कारण फ्राबेरको बहुत ही हर्ष हुआ और उन्होंने मोपासाँको यह लिखकर बधाई दी कि मेरी “ मैडेम वोवारी ” नामक पुस्तकपर भी पुलिसकी ऐसी ही कृपादृष्टि रही थी ।




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