बीज | Beej

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपने इस नये घर का वातावरण र।णश्वरी को पहली ही बार मे कष्ठ अच्छा नहीं लगा । एक तो घर की हर चीज़ में ऐसा एक दच्च था जो राजरेवरी को खल' गया। पतिंदेवेत। का हुलियां यों ही कुछ खास आंकषक नहीं था, मगर पास से देखने और चार छः रोज़ संग रहने पर तो राजेश्वरी को उनसे गहरी भरते हो गई । राजेश्वरी परी न सही मगर काफी खूजंधूरते लड़कों थी और पतिदेवत। के जोड़ में बिठाल देते पर तो सभुष्त हुर थी। चन्द्रमा प्रताद राजेश्वरी के सामपे बिलकुल कहे।र दिखाई देता था। यह सही हैं कि उनके घर में अशफियां गड़ी थीं लेकिन अशफियां चेरईम।भाबू के चेहरे-भोहर के संग भला क्या कीमिया कर देतीं | वह तो जैसा था वैसा था। उसपर कोई रंग-रोगन मुमकिन नहीं धा। मगर सबसे बड़ा गजब तो यह हआ किं उस ठस चेहरे पर कोई अकल की रोशनी भी न थी वर्ना उसी से शायद कुछ बात बनेती । विवाहित जीवन के न जानें क्‍या क्‍या लुभावनें सपने उसके षोडशवर्षीय मन में थे, सब पतिदेव के पहले ही दरस-परस से वहीं के वहीं ठंडे हो गये । फिर, उसके मन के किसी कोने में यह चीज़ भी बैठी हुई थी ही कि यह जाएमी एफ० ए० भी नहीं पास है। पढ़ने लिखने की उसकी जो नयी नयी उमंगें थीं उनको पूर्ति में उसे इस अदभी से भला क्या मदद मिल सकती थी। . .गरज, अपनी सभी जवान उमथों के सर्द हुत्वारे की शकल में राजश्वरी ने इस नये आदभी को देखा जो कि उसका पति था। ` : गर्मी की छुट्टियां खतभ होने पर जब राजेदवरी ने अपने ५६६५ से कहा कि वह चेलकर उसका नाम भ्हिंता विधांलेय मे सिका दें तो पतिदेव' ने ऐसा भुंह बेनाये। मानों यह चर्चा ही कोई वेशर्भी हो और उन्हें इस बात पर हैरत हो रही हो वह ऐसी फोहश बात मुंह पर




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