आधुनिक समीक्षा : कुछ समस्याएँ | Aadhunik Samiksha : Kuchh Samasyaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी-समीक्षा : पक दृष्टि ३
थी, यद्यपि शुक्ल जी का मन्तव्य सर्वथा निराधार नहीं था। कहा भते ही
ग्रव्यक्त और श्रमूर्त हो, पर ब्ह्म-विषयक भावनाएँ स्पष्ट ही! भूत और व्यक्त
जीवन-स्पन्दन का भाग हो सकती हैं ।
बात यह थी कि छायाबादियों के पास कोई स्पष्ड सामाजिक হহাঁল।
सामाजिक श्ादर्श था सस्देश न था; फलतः वे रहस्थवाद के লাল पर शिक्षित
समाज को श्रौर स्वयं श्रपने को भेलावा देने लगे) रावीच्छिक तथा जन॑
तांत्रिक मानववाद का झाददश उनके उपचेतन सें सजग था, पर शायद आत्तिक
भारतीय जनता के लिए उस समय वह पर्याप्त नहीं समझा गया ।
बस्तुतः छायावादी काव्य, चेतिक धरातल पर, जनतांत्रिक संबत्वभावना
और व्यक्ति को महत््व-धोषणा का काव्य है। सासस्ती राजा-शनियों के चरिन
के स्थान पर वहु साधारण मनुष्य के साधारण समोभावों और চ্যান গা
को प्रतिष्ठित करता है । भहावेवी जी कहीं कह गई हैं कि भ्राज को साहित्यकार
श्रपनी प्रत्येक साँस का इतिहास लिख लेना चाहता है। यह नकक्तव्य छामावाव
की व्यक्तिवादी “स्पिरिट' को प्रकट करता है; उसमें ब्रह्य रौर रहस्यवाद कै
महत्व का कोई संकेत नहीं है। निःसंदेह चायावाद इहलौकिकि प्रेम और
सौंदर्म-भावना का काव्य है। प्रकृति में ब्ेततल सत्ता का श्रारोष, और भेस-
लिवेदन को बह्म-विषयक घोषित करना, यहू कहने का एक ढंग-सात्र है कि
छापावादी कंवि का इस चीज़ों में श्रनुराग है। प्रत्ततः काव्य-साहित्य का
विषय सनुष्य का जीवन और र्वयं मानवी भावताएँ ही हैं। भौर काव्य का
उच्चतम धरातल होता है, दैवी या पारलौकिक नहीं ।
ग्राइचर्ग की बात है कि छाथावाव के प्रगत्तिवादी समीक्षक भी उसका उचित
समाज-शास्त्रीय विश्लेषण नहीं कर सके । छावावाद के विरोध की फोंक में
उन्होंने कहा कि बह काव्य पलायनवादी है । छायाबादी काव्य की विषय-वस्तु
वैयवितक है, सामालिक नहीं; पर इसका यह प्रथें नहीं कि बह पलायनवादी
है । सत्न यह है कि जीवन से पलायन करके कोई काव्य क्षण भर भी टिका
नहीं रह सकता । कविता के संकद के इस युय सें छायावादी काव्य का सहत्य
और भी स्पष्ट दीख पड़ता है। पलायमवादी काव्य हरगिजु भी ऐतिहासिक
महत्व को प्राप्त हीं कर सकता | श्रन्ततः जीवन के किसी अंग का घना परि-
चय और उसके महत्व का विश्वास ही साहित्य-सृष्टि को प्रेरणा दे सकते हैं।
झ्राधुनिक कवियों में 'निशा-निस॑स्त्रणँ और 'एकास्त-संग्रीत' के गायक बच्चन
का दृष्टिकोरा सबसे श्रधिक निषेधत्मक भौर निराशाबादी रहा है, पर बच्चन
के काव्य मे भौ जीवन कै उन मूल्यों की स्वीकृति प्रतिफलित है जिनके अभाव
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