दौलत जैनपदसंग्रह | Daulat Jainpadsangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दीरूत-जैनपदसंधह । १५ १९ जब॑तें आनंद-जननि दृष्टि परी पाई। त्वै संश्चय विमोह भरमता विलाई ॥ नदतें० ॥ टेक ॥ में हूं. चित- चिह, मिन्न परते, पर जडस्वरूप, दोइनकी एकता सु, जानी दुखदाई | जइ॑तें० ॥ १ ॥ रागादिद्न बंपहेत, वधन बहु विपत्ति देत) संवर दित जान तासु, हेतु বালাই | অন্বর্থ || २ ॥ सदर सुखमय शिद ই तसु कारन विधिझारन इमि, तस्की विचारन जिन,-दानि सुधिकराई । जवबलैं० ॥ ই (| दविपयचाहज्यालतें, द ह्यो श्रनंतकारूते सु, पांवुस्यात्यदांकगाह,-तें. प्रशांति আই। जबतें ॥ 9 ॥ या विन जगजाह्ममें न शरन तीनकालमें स,-म्हाल चित भजो सदीव, गैर य सहार | जवै ॥ ५॥ ५८५ मज पिति ऋयेश्च ताहि नित, नमत अपर श्रसरा । मलपेव पय दरदान्‌ सिद, हप-ग्थ-च धुय । मज०॥ रेक ॥ जा प्रयु गभे दपासरपृरे सुर करी सुवणे धरा । जन्पत सुरभिर धर सरगन्युत, दरि पय न्दम सरा {¦ सज० ॥ १ ॥ नटन न्ता লিজ -- -----~-*--~-~ १ निजरा। २ स्थाद्टादरूपी समृतमें अवगारन फरनेसे 1३ জুলিলাঘ | 8 परे ईशा आदिनाथ मगपधान्‌ 1 ५ कामदेदके मधनेवाले । ६ सोशएथ ७ एम्द्र | ८ उप्यरा।




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