बुन्देलखण्ड की प्राचीनता | Bundelkhand Ki Prachinata

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Bundelkhand Ki Prachinata by भागीरथप्रसाद त्रिपाठी - Bhagirath Prasad Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३३ / वहाँ रहकर वहाँ की प्राकृतिक शोभा, ऐतिहासिक स्थानों के औड्ांवशेषों, भर जातियों के नामकरण की संस्कृत व्युत्त्तियों में रमा रहना विश्येषे)प्रियः था ) भीलोन, राहतगढ़, पिठोरिया, दलपतपुर, एरण, बड़ोह, पठारी, त्योंदा, उदयपुर ( का देहरा ) आदि हमारी जन्मभूमि के आसपास अवस्थित हैं। श्लाँसी में संबन्धी श्री नाथुराम चोबे के घर हमारे परिवार के एक-दो सदस्य सदा रहते आये हैं; उनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहाँ होती रही है। मुझे भी वहाँ रहने का . अवसर मिला और मैंने आसपास की अभरण्यानियों ( ब्रह्ममाला, बरुआसागर, ओरछा आदि स्थानों ) में पयंटन करके उसका उपयोग रूप लाभ उठा लिया । सन्‌ १९५९ के ग्रीष्मावकाश मे छंतरपूर, खजुराहो, प्ता, नागौद और सतना के निकट्वर्ती क्षेत्रों में भ्रमण करके वहाँ की विद्येषताओं का अध्ययन किया । बुन्देलखण्ड में बिखरी जातियों और रीति-रिवाजों के मूल को खोजने की जिज्ञासा बचपन से ही मन में घर कर गयी थी । कोई मार्गंदर्शक नहीं मिला फिर भी मुझे नैराइ्य ने नहीं घेरा । मन में उठ हुए वे प्रश्न अज्ञात सत्र के किसी कोने में पड़े रहे। सन्‌ १६६३ ई० मे बुन्देलखण्ड के प्रकृत अध्ययन के अवसर पर वेद, वाल्मीकीय रामायण, महाभारत और (राखों के अथाह समुद्र में गोता लगाते समय वे मेरे पृव॑संस्कार सहायक के रूप में एक एक करके सामने आ खड़े हुए । अतः मेरा यह अवगाहन स्वान्तःसुखाय सिद्ध हुआ । शबर था शवर महाभारत और पुराण आदि साहित्य में 'शबर” तथा “शवर दोनों प्रकार के पाठ मिलते हैं। 'शबर' पाठ आधिक्यतः दृष्टिगोचर होता है। वैयाकरण इसे गत्थथंक ५८ व्‌ ( शव ) धातु से अर प्रत्यय या “शवं राति च्युत्पत्ति दिखाकर क' प्रत्यय करते है । वस्तुतः व्युत्पत्ति द्वारा कसकर इसका संस्कृतीकरण किया गया है। शम्बर और शम्बर में भी इसी प्रकार का दवैविध्यहै। सर्व॑ पाठ मिलता हैं--शम्बर”; पर व्युत्पत्ति करते समय वैयाकरण बना देते हैं इसे-- शम्बर' । राउत अथवा रावत लोग राउत ओर रावत दोनों शब्दों को जाति-विशेषण समझते रहे हैं । मैं भी यह पहेली हल नहीं कर पा रहा था। इसे हल न कर सकने का मुख्य कारण था--दो असमान जातियों के साथ उक्त छाब्दों का जुड़ना । अजयगढ़ ' भर गुजरात के शिलालेख पढ़ने पर समाघान मिल गया। राउत या रावत




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