कविता कौमुदी | Kavita Kaumudi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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শা শসা ( १३ ) हिन्दी और उदू दोनों भाषाये एक हैं। उनको अतरात्मा में कोई अतर नहीं है। उनका व्याकरण एक, उनके महावरे एक, उनकी प्रकृति एक ओर उनकी घारा एक है । हाँ, उस धारा के दो अ्रलग- श्रलग नाम रख लिये गये हैं, ओर अब केवल उनके नामों की लड़ाई है-यदचपि हिन्दी लफ़्ज़ से मुसलमानों को হইল ননী होना चाहिये, क्योंकि यह उन्हींका रक्खा हुआ नाम है, जिसके मानी हैं हिन्द अर्थात्‌ हिन्दुस्तान की भाषा | इस नाम से हिन्दुओं का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। उद्‌ शच्द का इतना व्यापक श्रयं भी नदी है । , हिन्दुस्तानी हिन्दी का एक नाम हिन्दुस्तानी भी है | यद्द अग्रेज़ी दिमाग़ की उपज है | सन १८०३ ई० में कलकत्ते के फोट विलियम में एक महकमा क्वायम हुआ था, जो ईस्ट-इडिया-कम्पनी के कर्मेचारियों को देशी भाषा सिखाने की व्यवस्था करता था। डाक्टर जान गिलक्रिस्ट साहब उसकी देख रेख के लिये तैनात हुए थे । उस मुदकमे के द्वारा हिन्दी-उदू में हिन्दू-मुसलमान विद्वानों से पुस्तकें लिखवाई गईं । हिन्दी की पुस्तकं पंडित सदल मिश्र और लस्लूलालजी ने लिखी, ओर उदू की किताबें मौर अम्मन देहलवी आदि कुछ मुसलमान लेखकों ने | उसी समय से सरकारी मुहर इस नाम पर लगी । गिलक्रिस्ट साहब ने स्वय सोलह पुस्तक लिखीं, जिनकी भाषा हिन्दुस्तानी? क़रार दी गई दे । इख छावी ददी पर राजा शिवप्रसाद सित्तारे-हिन्द ने श्रपनी कूलई चढ़ाई और उसमें उन्होंने कुछ पुस्तक और लेख लिखे | फ्रेडरिक पिंकाट साहब ने १ जनवरी, १८८४ को भारतेन्दु हरिश्रन्द्र के नाम हिन्दी में एक पत्र लिखा था, उससे राजा शिवप्रसाद और तत्कालीन श्रग्नेज़ों की मनोइति पर अ्रच्छा प्रकाश पड़ता है। पत्र का कुछ अश यहाँ दिया जाता है।




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