सेनापति कृत कवित्त रत्नाकर | Senapati Krit Kavitt Ratnakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
364
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रीति कालीन परिपाटी का अनुंसरण नहीं किया गया है अर्थात् माव, विभवं
अनुभाव आदि के लक्षणों तथा उदाहरणों का क्रम से वर्णन नहीं किया गया
है । संभव है सेनापति की दूसरी प्रसिद्ध कृति कान्य कल्पद्रुम मे इस परिपाटी
का अनुसरण किया गया हो |
“वित्त रल्नाकर! के प्रारंभ में सेनापति कहते हैं. कि हमारे काव्यं मे अनुपम
रस-ध्वनि ( असंलक्ष्यक्रस व्यंग्य ध्वनि! ) बतेमान है--
| सरस अनूप रस रूप या धुनि है ।
कुछ चित्रकाव्य संबंधी रचना कवित्त रताकरः के अन्त मे पाई जाती है ।
ध्वनि.वाद् के अनुसार चित्रकाव्य तथा कूट रादि शब्द्-कौतुक प्रधान रचना
भी काव्य के अन्तर्गत आ जाती हैं यद्यपि उन्हे सबसे निकृष्ट स्थान दिया गथा
है। इस मत के आधार पर यह अनुमान किया जा सकता था कि सेनापति
ध्वनि-संग्रदाय के अनुयायी थे । कितु कवित्त रत्नाकरः पढ़ने से यह धारणा निमूल
सिद्ध होती है । सेनापति पर ध्वनि-संप्रदाय का को विशेष प्रभाव नहीं था।
ध्वनि-वाद में व्यंजना शक्ति ही सब कुछ है, पर सेनापति ने उसका बहुत कम
उपयोग किया है । ऊपर उद्धृत पंक्ति में रस-ध्वनि इसलिए कह दिया गया है कि
ध्वनि के विशात्न प्रासाद के अन्तर्गत वविवज्षित वाच्य ध्वनिः के दो भेदों में से
असंलक्ष्यक्रम व्यंग्यः में रस, भाव, रसाभास, भावाभास आदि भी आ जाते
हैं| सेनापति पर अलंकारो का प्रभाव अधिक है! वे रस-संग्रदाय से भी ग्रभा-
वित हुए हैं, किंतु वहुत नहीं। अलंकारों की प्रधानता के कारण उनका ध्यान
` रसोत्कषं पर अधिकं देर तक नदीं उहरता है । उनके लिए अलंकार वर्णन-रौलियां
नदी, वरन् वण्यै-वस्तु है । स्वयं कवि ने 'कवित्त रताकरः की पहली तरंग में अपनी
श्लिष्ट रचनाओं को संग्रहीत किया है ओर उसका नाम श्लेष वर्णन” रक्खा है।
(वित्त रज्नाकरः मे श गार, वीर, रौद्र, भयानक तथा शान्त रस संबंधी
रचनाएँ पाह जाती है । स्वभावतः अन्य হাঁ की अपेन्ता श गार रस का अधिक
विस्तार पाया जाता है । शगार रस के आलंबन विभाव नायक्ृ-नायिका है।
वित्त रलाकरः मे स्वाभाविक सोदरं के वणेन थोड़े होते हए भी सजीव हृए है ।
रसे बणेनों मे कवि ने मौलिकता से काम किया है। सौंदर्य-वर्शन का एक
उदाहरण देखिए--
% पहली तरंग, चद् ७।
७ ]
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