सेनापति कृत कवित्त रत्नाकर | Senapati Krit Kavitt Ratnakar

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Senapati Krit Kavitt Ratnakar  by उमाशंकर शुक्ल - Umashankar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रीति कालीन परिपाटी का अनुंसरण नहीं किया गया है अर्थात्‌ माव, विभवं अनुभाव आदि के लक्षणों तथा उदाहरणों का क्रम से वर्णन नहीं किया गया है । संभव है सेनापति की दूसरी प्रसिद्ध कृति कान्य कल्पद्रुम मे इस परिपाटी का अनुसरण किया गया हो | “वित्त रल्नाकर! के प्रारंभ में सेनापति कहते हैं. कि हमारे काव्यं मे अनुपम रस-ध्वनि ( असंलक्ष्यक्रस व्यंग्य ध्वनि! ) बतेमान है-- | सरस अनूप रस रूप या धुनि है । कुछ चित्रकाव्य संबंधी रचना कवित्त रताकरः के अन्त मे पाई जाती है । ध्वनि.वाद्‌ के अनुसार चित्रकाव्य तथा कूट रादि शब्द्-कौतुक प्रधान रचना भी काव्य के अन्तर्गत आ जाती हैं यद्यपि उन्हे सबसे निकृष्ट स्थान दिया गथा है। इस मत के आधार पर यह अनुमान किया जा सकता था कि सेनापति ध्वनि-संग्रदाय के अनुयायी थे । कितु कवित्त रत्नाकरः पढ़ने से यह धारणा निमूल सिद्ध होती है । सेनापति पर ध्वनि-संप्रदाय का को विशेष प्रभाव नहीं था। ध्वनि-वाद में व्यंजना शक्ति ही सब कुछ है, पर सेनापति ने उसका बहुत कम उपयोग किया है । ऊपर उद्धृत पंक्ति में रस-ध्वनि इसलिए कह दिया गया है कि ध्वनि के विशात्न प्रासाद के अन्तर्गत वविवज्षित वाच्य ध्वनिः के दो भेदों में से असंलक्ष्यक्रम व्यंग्यः में रस, भाव, रसाभास, भावाभास आदि भी आ जाते हैं| सेनापति पर अलंकारो का प्रभाव अधिक है! वे रस-संग्रदाय से भी ग्रभा- वित हुए हैं, किंतु वहुत नहीं। अलंकारों की प्रधानता के कारण उनका ध्यान ` रसोत्कषं पर अधिकं देर तक नदीं उहरता है । उनके लिए अलंकार वर्णन-रौलियां नदी, वरन्‌ वण्यै-वस्तु है । स्वयं कवि ने 'कवित्त रताकरः की पहली तरंग में अपनी श्लिष्ट रचनाओं को संग्रहीत किया है ओर उसका नाम श्लेष वर्णन” रक्खा है। (वित्त रज्नाकरः मे श गार, वीर, रौद्र, भयानक तथा शान्त रस संबंधी रचनाएँ पाह जाती है । स्वभावतः अन्य হাঁ की अपेन्ता श गार रस का अधिक विस्तार पाया जाता है । शगार रस के आलंबन विभाव नायक्ृ-नायिका है। वित्त रलाकरः मे स्वाभाविक सोदरं के वणेन थोड़े होते हए भी सजीव हृए है । रसे बणेनों मे कवि ने मौलिकता से काम किया है। सौंदर्य-वर्शन का एक उदाहरण देखिए-- % पहली तरंग, चद्‌ ७। ७ ]




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